25 अक्तूबर, 1951 को देश का पहला वोट हिमाचल प्रदेश की चीनी तहसील में डाला गया, जाने देश के पहले चुनाव के बारे में

पहले चुनाव में 17 करोड़ 30 लाख से ज्यादा वोटर्स थे, जिनमें 8.8 करोड़ लोगों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। इसमें लोकसभा की 489 सीटों पर चुनाव हुए थे और 1874 कैंडिडेट मैदान में थे। चुनाव आयोग ने ये चुनाव तब कराया था, जब आयोग का गठन हुए एक साल (1950) हुआ था और देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत करने में कई चुनौतियां थीं।

देश का पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 को शुरू हुआ था जो 4 महीने यानी फरवरी 1952 तक चला था। इस दौरान 17 दिन वोटिंग हुई थी।

20.80 लाख महिलाओं ने अपना नाम बताने की बजाय परिवार के पुरुष से अपना रिश्ता बताया था, मसलन मैं फलां की पत्नी हूं, मैं फलां की बहू हूं। हालांकि इन एंट्रीज को नामावली से हटा दिया गया था। इस तरह की जानकारियां बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, राजस्थान और विंध्य भारत की महिलाओं ने दी थीं।

चुनाव करवाने के लिए करीब 56000 लोगों को प्रेसाइडिंग आफ़िसर के तौर पर चुना गया था। उनकी मदद के लिए 2 लाख 28 हज़ार सहायकों और 2 लाख 24 हज़ार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था।

नकली मतदाताओं से बचने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसी स्याही बनाई थी जो मतदाता की उंगली पर एक सप्ताह के लिए बनी रहती थी। भारत भर के 3000 सिनेमाघरों में चुनाव और मतदाताओं के अधिकार से संबंधित वृत्त चित्र दिखाया गया था।

नेहरू ने चुनाव प्रचार के लिए हवाई जहाज़ के अलावा सड़कों और रेलों का भी इस्तेमाल किया। 1 अक्तूबर, 1952 से उनका चुनाव प्रचार अभियान शुरू हुआ। नौ महीनों के अंदर नेहरू ने देश के कोने कोने में चनाव प्रचार किया।

नेहरू ने कुल 25000 मील की दूरी कवर की, जिसमें 18000 मील हवाई रास्ते और 5200 मील कारों, 1600 मील रेल और यहाँ तक कि 90 मील का रास्ता उन्होंने नावों में बैठकर तय किया।

नेहरू का पहला चुनावी भाषण पंजाब में लुधियाना में हुआ। इसमें उन्होंने साँप्रदायिक दलों पर हमला बोलते हुए कहा कि वो लोग हिंदू और सिख संस्कृति के नाम पर साँप्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे हैं जैसा एक ज़माने में मुस्लिम लीग ने किया था।

भारतीय जनसंघ ने 49 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें तीन सीटों पर उसे विजय मिली। पार्टी के अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी कलकत्ता दक्षिण पूर्व से चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुंचे।

किसान मज़दूर प्रजा पार्टी ने 144 सीटों में चुनाव लड़ा लेकिन उसके सिर्फ़ 9 उम्मीदवार ही लोकसभा में पहुंच सके।

1952 के चुनाव का पहला वोट 25 अक्तूबर, 1951 को हिमाचल प्रदेश की चीनी तहसील में डाला गया। उसी दिन ब्रिटेन में भी मतदान शुरू हुआ। अगले दिन ही चुनाव परिणाम आ गए और सत्ताधारी लेबर पार्टी को हरा कर कंज़रवेटिव पार्टी के विंस्टन चर्चिल एक बार फिर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गए।

लेकिन चीनी के मतदाताओं को चुनाव परिणाम के लिए महीनों इंतज़ार करना पड़ा क्योंकि देश के दूसरे भागों में जनवरी और फ़रवरी, 1952 में ही मतदान कराया जा सका।

सबसे अधिक 80 फ़ीसदी मतदान केरल के कोट्टायम चुनाव क्षेत्र में हुआ जबकि मध्य प्रदेश के शहडोल चुनाव क्षेत्र में सबसे कम 20 फ़ीसदी वोट डाले गए।

पूरे देश व्यापक अशिक्षा के बावजूद करीब 60 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। भारतीय जनतंत्र में लोगों के विश्वास की सबसे बड़ी मिसाल हैदराबाद से आई जहाँ कुछ साल पहले तक भारत सरकार के खिलाफ़ मोर्चा खोलने वाले निज़ाम हैदराबाद ने सबसे पहले आकर मतदान किया।

फ़रवरी के अंतिम सप्ताह में पूरे देश में मतदान समाप्त हुआ। कांग्रेस पार्टी को लोकसभा में 499 में से 364 सीटें मिलीं जबकि राज्य विधानसभाओं की कुल 3280 सीटों में 2247 सीटें कांग्रेस को मिलीं।

कांग्रेस को संसदीय चुनाव में कुल 45 फ़ीसदी मत मिले लेकिन उसकी सीटों की संख्या 74 फ़ीसदी थी। हारने वाले नेताओं में प्रमुख थे राजस्थान में जयनारायण व्यास, बंबई मे मोरारजी देसाई और भीमराव अंबेडकर जिन्हें एक बहुत ही साधारण उम्मीदवार कजरोलकर से हार का स्वाद चखना पड़ा।

यही नहीं दो वर्ष बाद जब उन्होंने भंडारा चुनाव क्षेत्र से एक उप चुनाव लड़ा, वहाँ भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। किसान मज़दूर प्रजा पार्टी के आचार्य कृपलानी भी फ़ैज़ाबाद से चुनाव हार गए, लेकिन कुछ दिनों बाद वो भागलपुर से उप चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचने में सफल रहे।

आज़ादी के बाद देश का पहला लोकसभा चुनाव 1951-52 में सम्पन्न हुआ। इस चुनाव में 14 राष्ट्रीय पार्टी और 53 अन्य राजनीतिक दलों ने भाग्य आजमाइश की थी। इस चुनाव में पण्डित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस को 44.99 प्रतिशत मत और 364 सीटें मिली थी तथा 13 अन्य राष्ट्रीय दलों को 54 सीटें मिली। राष्ट्रीय दलों में जनसंघ को मात्र 3 सीटें मिली थी। क्षेत्रीय दलों को 34 तथा निर्दलीय 37 सीटों पर चुनाव जीते थे। इस प्रथम चुनाव में 17 करोड़ 32 लाख मतदाता थे और 61.16 प्रतिशत मतदान हुआ था। कुल 489 लोकसभा सीटें थी। जिनमें 391 जनरल और 98 सुरक्षित सीटें शामिल हैं। 14 राजनीतिक दल और 39 क्षेत्रीय दलों ने चुनाव में भाग लिया था।