लोकसभा चुनाव 1984: कांग्रेस ने तब लोकसभा चुनाव में अकेले जीतीं थीं 414 सीटें, यूपी में 85 में 83 सीटों पर किया कब्जा

यूरीड मीडिया- लोकसभा में बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि वर्ष 2024 के चुनावों में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को और ज्यादा सीटें मिलेंगी जबकि एनडीए इस बार 400 सीटों के पार जाएगा. भारत के 70 सालों के लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया में केवल एक बार ऐसा हुआ जब कोई पार्टी अपने बल पर 400 से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. इसके बाद या इसके पहले कभी कोई पार्टी ऐसा नहीं कर पाई. ये करिश्मा वर्ष 1984 के आम चुनावों में हुआ था.

तब पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद 1984 में देश में आम चुनाव हुए. हालांकि असम और पंजाब में चल रहे विद्रोह के कारण 1985 तक मतदान में देरी हुई.

जीतीं 541 में 414 सीटें
कांग्रेस ने इस चुनावों में 541 में 414 सीटें जीती थीं. ये कांग्रेस की 1952 के पहले आम चुनावों के बाद से सबसे बड़ी जीत थी. ना तो कांग्रेस इससे पहले कभी इतनी शानदार जीत हासिल की थी. और ना ही इसके बाद हासिल कर पाई. अब तो खैर पिछले दो आमचुनावों में कांग्रेस की सीटें बहुत घटीं हैं. आज भी कोई पार्टी अपने दम पर देश में किसी भी चुनावों में इतनी सीटें जीतने के बारे में नहीं सोच सकती.

31 अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सारा देश सन्न रह गया. इंदिरा गांधी बेशक इमर्जेंसी लगाने के बाद देशभर में बहुत बदनाम हुईं.नतीजा ये हुआ कि वह 1977 के आम चुनावों में बुरी तरह हारीं. हालांकि इंदिरा गांधी को हराकर सत्ता में पहुंची जनता पार्टी की सरकार केवल तीन सरकार में गिर गई. 1980 में जब फिर चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी बड़ी जीत के साथ सत्ता में लौटीं.

देश में थी इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर
आपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिख तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नाराज हो गए. इसका नतीजा ये हुआ कि उनके ही दो सुरक्षा गार्डों ने प्रधानमंत्री आवास में ताबड़तोड़ फायरिंग करके उनकी हत्या कर दी. इसके बाद तब राष्ट्रपति जैल सिंह ने आनन-फानन में उनके बेटे राजीव गांधी को प्रधानमंत्री की शपथ दिला दी. दिसंबर 1984 में आमचुनाव घोषित हो गए.

कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर पुराने चेहरों के टिकट काटे थे
कांग्रेस ये चुनाव राजीव गांधी की अगुवाई में लड़ रही थी. राजीव गांधी के इर्द-गिर्द एक ऐसी चौकड़ी थी, जो कंप्युटर और नई तकनीक की जानकार थी. ये वो चौकड़ी भी थी, जो पहली बार कांग्रेस प्रत्याशियों को टिकट देने में नए पैरामीटर्स लागू कर रही थी. जिसके चलते बड़े पैमाने पर कांग्रेसी नेताओं के टिकट चुनावों के लिए काट दिए. बडे़ पैमाने पर नए चेहरों और युवाओं को मौका मिला. हालांकि इससे कांग्रेस में एक बड़ा असंतुष्ट तबका तैयार हो गया. बहुत से ऐसे नेता भी थे, जो विद्रोह करके चुनाव मैदान में कांग्रेसी प्रत्याशियों के खिलाफ मैदान में उतर गए.

कांग्रेस को भी 350 सीटों से ज्यादा की उम्मीद नहीं थी
इंदिरा गांधी की हत्या से देशभर में सहानुभूति की एक बड़ी लहर राजीव गांधी और कांग्रेस के साथ थी. कांग्रेस को ये अंदाज तो था कि इस बार का आमचुनाव वो जीत जाएंगे. बहुमत हासिल करने में उन्हें दिक्कत नहीं होनी चाहिए लेकिन उन सभी का मानना था कि कांग्रेस बहुत ज्यादा से ज्यादा 350 सीटें जीत पाएगी. इससे ऊपर का कोई नहीं सोच रहा था. उसकी भी वजहें थीं.

असंतोष भी और विद्रोही भी
सबसे बड़ी वजह तो यही थी कि कांग्रेस के अंदर असंतोष भी था और असंतुष्ट कांग्रेसी जो विद्रोह करके चुनाव में कूद चुके थे, वो भी कांग्रेस का नुकसान कर सकते थे. विपक्ष हालांकि बहुत मजबूत स्थिति में नहीं था लेकिन उन्हें भी लग रहा था कि कांग्रेस बहुमत तो पा लेगी लेकिन उसको असंतोष के कारण बहुत सी जगहों पर झटका झेलना होगा.

यूपी के बारे में हर कोई क्या अंदाज लगा रहा था
मसलन यूपी जहां सबसे ज्यादा 85 लोकसभा सीटें थीं, वहां कांग्रेसी खुद मान रहे थे कि वो बहुत ज्यादा से ज्यादा 55-60 सीटें यहां जीत लें तो बहुत होगा. वहीं विपक्षी और विद्रोही कांग्रेसी मानकर चल रहे थे कि यूपी में कांग्रेस किसी भी हाल में 40 से ज्यादा सीटें नहीं जीतेगी लेकिन जब मतपेटियों से मतपत्रों का सैलाब बाहर आना शुरू हुआ तो हर कोई सन्न रह गया. कांग्रेसी खुद इन परिणामों से हक्का बक्का थे, क्योंकि जो भी चुनाव परिणाम थे, वो उनकी उम्मीदों से कहीं बहुत ज्यादा ही उनके पक्ष में थे.

यूपी की 85 में 83 सीटें जीतीं
यूपी में तब कांग्रेस ने 85 में 83 सीटें जीतीं. विपक्ष के सारे दिग्गजों के पैर उखड़ गए. जो दो सीटें यूपी में किसी पार्टी ने जीती थी, वो लोकदल थी, जिसमें एक सीट पर लोकदल प्रमुख चरण सिंह बागपत से जीते थे तो दूसरी सीट पर लोकदल एटा से विजयी हुई थी, जिस पर उसके प्रत्याशी मुहम्मद महफूज अली खान उर्फ प्यारे मियां थे.

कांग्रेस ने उस चुनाव में 541 में कुल 414 सीटें जीतीं. उसका वोट प्रतिशत 50 के आसपास था. कोई भी विपक्षी दल तब ढंग से खड़ा भी नहीं हो पाया. अलबत्ता मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 22 सीटें जीती थीं तो आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव की तेलुगु देशम ने 30 सीटें जीतकर हर किसी को अचंभित किया था.

6 अप्रैल 1980 को स्थापित हुई भारतीय जनता पार्टी ने 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई. अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता वाली इस पार्टी के लिए यह पहला चुनाव था. उसे सिर्फ 2 सीटों से संतोष करना पड़ा. अटल खुद चुनाव हार गए.