लोकसभा चुनाव 1989: कांग्रेस को लगा बड़ा झटका, मात्र 16 महीने में लोकसभा भंग

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को चुनाव में जो सफलता मिली थी, 1989 में वह हाथ से फिसल गई। नौवीं लोकसभा में लोगों ने जमकर मतदान किया लेकिन किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। बोफोर्स घोटाला, पंजाब में बढ़ता आतंकवाद, LTTE और श्री लंका सरकार के बीच बढ़ते तनाव के बीच राजीव गांधी की छवि को झटका लगा। राजीव सरकार की कैबिनेट में रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ही उनके सबसे बड़े आलोचक बन गए। अब तक बीजेपी की स्थिति भी मजबूत हो गई थी। 1889 में विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के आठवें प्रधानमंत्री बने।

राजनीतिक परिदृश्य
पांच साल के कार्यकाल में कई गड़बड़ियों के चलते राजीव गांधी की छवि जनता की नजरों में धूमिल होने लगी थी। बोफोर्स घोटाला और पंजाब में बढ़ते आतंकवाद की वजह से राजीव गांधी सरकार की खूब आलोचना हुई। राजीव सरकार में विश्वनाथ प्रताप सिंह वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री थे। वह राजीव गांधी के सबसे बड़े आलोचक बन गए।

सिंह के हाथ से मंत्रालय ले लिया गया तो उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और आरिफ मोहम्मद खान और अरुण नेहरू के साथ मिलकर जन मोर्चा का गठन किया। वह इलाहाबाद से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोग से बने नैशनल फ्रंट के तहत वी. पी. सिंह प्रधानमंत्री बने। बीजेपी और सीपीआई (M) ने उन्हें बाहर से समर्थन दिया।

चुनाव परिणाम
इस चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला हालांकि कांग्रेस को सबसे ज्यादा 197 सीटों पर जीत हासिल हुई। जनता दल 143 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही। इसके बाद बीजेपी को 85 सीटें मिलीं और सीपीएम को 33 सीटें हासिल हुईं। वोट प्रतिशत की बात करें तो यह सबसे ज्यादा कांग्रेस (39.53) का था। वोट प्रतिशत के मामले में जनता दल दूसरे नंबर पर रहा लेकिन यह कांग्रेस के मुकाबले आधे से भी कम था। इस चुनाव में AIADMK को 11 और CPI को 12 सीटों पर विजय मिली।

आडवाणी की रथयात्रा और वीपी सिंह सरकार का गिरना
25 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने मंदिर आंदोलन को बढ़ाने के लिए रथयात्रा शुरू की। यह वीपी सिंह सरकार के मंडल आरक्षण के विरुद्ध उस समय सबसे बड़ा हथियार था। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया लेकिन उस समय के उपायुक्त अफजल अमानुल्लाह ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। 23 अक्टूबर को आडवाणी समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिए गए फलस्वरूप 86 सदस्यों वाली बीजेपी ने वी. पी. सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार गिर गई।

चंद्रशेखर बने प्रधानमंत्री
चंद्रशेखर 1990 में जनता दल से 64 सांसदों के साथ अलग हो गए और समाजवादी जनता पार्टी बना ली। कांग्रेस से बाहर से समर्थन हासिल करके वह नौवें प्रधानमंत्री बन गए। लेकिन बाद में कांग्रेस ने आरोप लगाया कि वह राजीव गांधी की जासूसी करवा रहे हैं। 6 मार्च 1991 को उन्होंने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।

अल्पसंख्यकों के ‘मसीहा’ बने लालू प्रसाद यादव
लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा का फायदा लालू प्रसाद यादव ने भरपूर उठाया। उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि वह सांप्रदायिक सद्भाव की ओर हैं और इसलिए राम रथयात्रा का विरोध कर रहे हैं। इसीलिए उन्होंने राम मंदिर से संबंधित किसी भी जुलूस को रोकने का आदेश दे दिया था। उन्होंने पटना के गांधी मैदान में ‘सांप्रदायिकता विरोधी’ रैली की। आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद लालू अल्पसंख्यकों के हितैषी बनकर उभरे और अपना वोट बैंक मजबूत कर लिया।

1984 में हुए आम चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी. वे चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ ही दिनों बाद हुए थे. उस वक्त कांग्रेस पार्टी ने 414 सीटें जीतकर इतिहास बना दिया. आप इस जीत की व्यापकता का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि दूसरे नंबर पर रहने वाली तेलुगू देशम पार्टी को केवल 30 सीटें मिली थीं.

दरअसल, राजीव गांधी की सरकार में एक सबसे कद्दावर नेता हुआ करते थे विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह). वह राजीव कैबिनेट में रक्षा और वित्त जैसे बड़े-बड़े मंत्रालय संभाल रहे थे. उसी दौरान बोफोर्स तोप सौदे में धांधली की रिपोर्ट आई और वीपी सिंह ने इसके लिए सीधे अपने पीएम राजीव गांधी पर निशाना साधा. यह बात 1988 की है. देश में बोफोर्स तोप सौधे में धांधली की यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई. कटघरे में सीधे तौर पर राजीव गांधी को खड़ा किया गया. हालांकि, बाद में इस कथित घोटाले में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं निकला. ऐसे आरोप लगाए गए कि इस सबसे बड़े हथियार सौदे में 65 करोड़ रुपये की दलाली हुई है. वीपी सिंह ने इस मामले पर सीधे तौर पर राजीव गांधी की आलोचना की. इस कारण उन्हें कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया गया. बर्खास्त किए जाने के बाद वीपी सिंह ने कांग्रेस पार्टी भी छोड़ दी.

जेपी ने जन्म दिन पर बनी पार्टी
इसके बाद वीपी सिंह ने राजीव गांधी की सरकार को सत्ता से हटाने के लिए 11 अक्टूबर 1988 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर जनता पार्टी और उसके अन्य धड़ों को मिलाकर जनता दल बनाया. फिर उन्होंने कई अन्य दलों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन बनाया. इस गठबंधन ने 1989 के आम चुनाव में बेहद प्रभावी तरीके से भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया और चुनाव शानदार जीत दर्ज की. इस चुनाव में हालांकि कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी थी. उसे कुल 531 में से 197 सीटें मिलीं, लेकिन दूसरे नंबर पर जनता दल थी. उसे 143 सीटें मिलीं. उस चुनाव में भाजपा तीसरी सबसे बड़ी ताकत बनी. उसकी सीटें दो से सीधे बढ़कर 85 हो गईं. उस दौर में भाजपा की ओर से लालकृष्ण आडवाणी सबसे बड़े नेता बनकर उभरे थे. फिर वाम दलों को 33 सीटें मिलीं.

पांच के शून्य प्रतिशत मत तो 3.74 प्रतिशत वोटों में सिमट गए थे 119 निर्दलीय उम्मीदवार
चुनाव के परिणाम भी खूब रोमांचक रहे। चुनाव में पांच उम्मीदवार ऐसे थे, जिनके शून्य प्रतिशत मत थे। 72 उम्मीदवार ऐसे थे जिन्हें 100 से भी कम वोट मिले। 44 प्रत्याशी हजार से कम वोट में सिमेटे। चुनाव में चौ. बंसीलाल ने 3,57,625 वोट लेकर जनता दल के धर्मबीर सिंह 2,00295 वोट को 1,57,330 वोट से हराया। बसपा के राजेंद्र 14,609 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे। चौ. बंसीलाल को 60.13, धर्मबीर को 33.67, राजेंद्र सिंह 2.46 प्रतिशत वोट मिले। बाकी सभी 119 निर्दलीय उम्मीदवार 3.74 प्रतिशत वोटों में सिमट गए। 120 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।