पाकिस्तान ने अपने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा है। इस तरह से गिलानी दूसरे भारतीय बन गए हैं जिन्हें ये अवार्ड दिया गया है। इससे पहले ये पुरस्कार पाने वाले भारत के एकमात्र पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई हैं। पाकिस्तान ने उन्हें ये सम्मान दोनों देशों के बीच रिश्तों को सुधारने के लिए दिया था। आपको बता दें कि मोरारजी देसाई पहले ऐसे व्यक्ति भी हैं जिन्हें भारत और पाकिस्तान की तरफ से सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया जा चुका है।
जहां तक निशान-ए-पाकिस्तान की बात है तो आपको ये भी बता दें कि 19 मार्च 1957 को स्थापित किए गए इस सम्मान को अब तक 26 विदेशियों को दिया जा चुका है। 1960 में पहली बार ये सम्मान ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ (द्वितीय) को दिया गया था। 1961 में अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहोवर और 1969 में रिचर्ड निक्सन को यह सम्मान दिया गया। 1990 में मोरारजी देसाई और 1992 में पूर्व दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला को निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया जा चुका है। चीन के शी चिनफिंग, ली कियांग, हू जिंताओ और ली पेंग भी इस सम्मान को हासिल कर चुके हैं। आमतौर पर इस सम्मान को देने की घोषणा पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 14 अगस्त को की जाती है और अलंकरण समारोह का आयोजन 23 मार्च को होता है।लेकिन इस बार इसकी घोषणा पहले ही कर दी गई थी।
पाकिस्तान से रिश्ते किए बेहतर
निशान ए पाकिस्तान को पाने वाले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की बात करें तो उन्होंने अपने छोटे से कार्यकाल में पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते काफी हद तक बेहतर कर लिए थे। वे देश के चौथे और पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री भी थे। 29 फरवरी 1896 को बॉम्बे के भदेली गांव में जन्मे मोरारजी देसाई 1977 से 1979 तक देश के प्रधानमंत्री रहे थे। इसके अलावा वे बॉम्बे के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। आजादी की लड़ाई में उनका योगदान अतुलनीय रहा है। एक पारंपरिक धार्मिक परिवार से आने वाले मोरारजी देसाई कहा करते थे कि हर आदमी को अपनी जिंदगी में सच्चाई और उसके विश्वास के अनुरूप काम करना चाहिए। ब्रिटिश शासन के दौरान वे करीब 12 वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर के पद भी रहे थे। बाद में महात्मा गांधी से प्रेरित होकर वो 1930 में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। 1931 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली। वे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की केबिनेट में मंत्री भी बने। इसके बाद इंदिरा गांधी केबिनेट में उन्होंने उप प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री का पदभार भी संभाला था।
इंदिरा गांधी से नाराजगी
1969 में इंदिरा गांधी के एक फैसले से नाराज होकर उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। दरअसल, उस वक्त इंदिरा गांधी ने उनसे वित्तमंत्री का पद वापस लेकर 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इससे विमुख होकर उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस (आर्गेनाइजेशन) की स्थापना की। उन्होंने इंदिरा गांधी का आपातकाल जैसे फैसले के लिए भी पुरजोर विरोध किया था। जब आपातकाल के खिलाफ अन्य विरोधी पार्टियां लामबंद हुईं तो इनसे बनी जनता पार्टी का मोरारजी देसाई ने ही नेतृत्व किया। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने जबरदस्त सफलता हासिल की और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया।
जब जिया उल हक को कहा छोटा भाई
जब उन्होंने पद संभाला था तब पाकिस्तान से भारत के रिश्ते बेहद निचले स्तर पर थे। बांग्लादेश उदय की वजह से दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। मोरारजी देसाई ने पाकिस्तान के साथ रिश्तों को बेहतर करने की कोशिश की। इसके लिए मोरारजी देसाई और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक के बीच एक मीटिंग हुई। इसमें मोरारजी देसाई ने जिया उल हक से कहा कि लेन-देन चलते रहना चाहिए। अगर हम दोनों देशों के हितों की दिशा में काम करें तो हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं रहेगा। हमें एक दूसरे से भाई की तरह व्यवहार करना चाहिए। मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूं। मुझे तुमसे कुछ लेना नहीं है, बस तुम्हें सब कुछ देना है।
मैं एक्शन लेना भी जानता हूं
इन सभी के बावजूद मोरारजी देसाई भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को लेकर भी पूरी तरह से चौकस थे। वे अपनी सख्त कार्रवाई के लिए भी जाने जाते थे। जिया उल हक के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने ये भी कहा था कि अगर कुछ भी गलत होता है तो तुम जिम्मेदार होगे। मैं ऐसा शख्स नहीं हूं, जो सिर्फ बातें करता है। मैं एक्शन लेना भी जानता हूं। वो देश की सुरक्षा को खतरे में डालकर रिश्ते सुधारने के पक्षधर नहीं थे। सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने के बाद 19 मई 1990 को पाकिस्तान ने उन्हें निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान से नवाजा था और इसके बाद 1991 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 10 अप्रैल 1995 को उनका निधन हो गया था।
1977 में जनता सरकार में प्रधानमंत्री बने
1975 में मोरारजी देसाई जनता पार्टी में शामिल हो गए. मार्च 1977 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया लेकिन उनके लिए प्रधानमंत्री बनना इतना आसान नहीं था क्योंकि चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. ऐसे समय में जयप्रकाश नारायण का समर्थन काम आया और मोरारजी प्रधानमंत्री बने.
पीएम बनते ही कांग्रेस सरकारों को भंग कर दिया
प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने देश के 09 राज्यों में कांग्रेस के शासन वाली सरकारों को भंग कर दिया गया. राज्यों में नए चुनाव कराये जाने की घोषणा की. उनके इस कदम की काफी आलोचना भी हुई. हालांकि मोरारजी के शासन के दौरान देश में लगातार अव्यवस्थाएं देखने को मिलीं. वास्तव में जनता पार्टी ऐसी खिचड़ी सरकार थी, जिसमें अलग विचारधाराओं वाले लोग मंत्री थे. जो अपने अपने तरीके से काम कर रहे थे न कि सरकार के अनुसार.
सादगी और ईमानदारी पसंद नेता
हालांकि प्रधानमंत्री के तौर पर मोरारजी देसाई का कार्यकाल काफी चुनौतियां वाला रहा. हालात मुश्किल रहे. 1979 में अर्द्धसैनिक बलों ने विद्रोह कर दिया, जिसे कुचलने में काफ़ी समय लगा. 1978-79 में कई राज्यों में सूखा पड़ा. अक़ाल की स्थिति पैदा हो गई. महंगाई बढ़ गई. केरोसिन तेल भी ग़रीब जनता के लिए सपना हो गया.
मोरारजी देसाई का अपने किसी मंत्री पर कोई जोर नहीं रह गया. 15 जुलाई, 1979 को मोरारजी देसाई की सरकार अल्पमत में आ गई. उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. उन्हें गांधीवादी नीति का परम समर्थक माना जाता है. वो जो फैसला कर लेते थे, उस पर कायम रहते थे. हालांकि वो सादगी वाले और ईमानदार नेता थे.वो समझौते नहीं कर पाते थे.
स्वमूत्रपान को उत्तम औषधि मानते थे
मोरारजी देसाई ‘स्व-मूत्रपान’ को स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम औषधि मानते थे. ‘शिवांगु’ अर्थात् स्व-मूत्रपान के सम्बन्ध में उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था. इसके लाभ भी बताए. वह भोजन में थोड़ा दूध, मौसमी फलों का रस एवं कुछ सूखे मेवे लेते थे. वह इंटरव्यू में कहते भी थे कि उनकी लंबी उम्र का राज स्वमूत्रपान है, जिसको वह लगातार करते रहे हैं.
रात में जगाना पसंद नहीं था
जब वो सोने चले जाते थे तो उन्हें रात में जगाना पसंद नहीं था. प्रधानमंत्री रहते हुए भी यही प्रक्रिया जारी रही. वो 100 साल जीना चाहते थे लेकिन इनकी मृत्यु 99 वर्ष और कुछ माह गुज़रने के बाद 1995 में हो गई. वह अकेले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्हें भारत सरकार की ओर से ‘भारत रत्न’ तथा पाकिस्तान की ओर से ‘तहरीक़-ए-पाकिस्तान’ का सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान प्राप्त हुआ.