किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में 23 दिसंबर 1902 को हुआ था। उनकी शिक्षा सरकारी उच्च विद्यालय और विश्वविद्यालय मेरठ से पूरी हुई। उन्होंने विज्ञान स्नातक, कला स्नातकोत्तर और विधि स्नातक की पढ़ाई की थी। चौधरी चरण सिंह ने पूरे जीवनभर किसानों के मुद्दे उठाए और उनके हक दिलाने का काम किया। चौधरी चरण सिंह का निधन 29 मई 1987 में दिल्ली में हुआ था।
जब 1929 में लाहौर में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का एलान किया तो नेहरू कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे, तब चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमिटी का गठन किया। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ। एक रोज चौधरी चरण सिंह हिंडन नदी के किनारे नमक बनाने पहुंच गए। इसके बाद चौधरी साहब को छह महीने की जेल हो गई। जेल से वापसी के बाद चौधरी चरण सिंह पूरे जोर-शोर से स्वतंत्रता आंदोलन में आ गए।
वहीं, 1937 में चुनाव हुए तो बागपत से चौधरी चरण सिंह विधानसभा के लिए चुने गए। विधानसभा में किसानों की फसल से संबंधित एक बिल पेश किया। ये उस वक्त का क्रांतिकारी बिल था, जब ब्रिटिश सरकार ने भारतीय किसानों को ही सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई थी। अंग्रेजी सरकार ने मुगलिया टैक्स सिस्टम को हटाकर बेहद क्रूर सिस्टम लागू किया था। भारत में इसकी वजह से बहुत गरीबी फैल गई थी।
उन्होंने 1939 में कर्जा माफी विधेयक पास करवाकर किसानों के खेतों की नीलामी रुकवाई गई। 1939 में ही किसान के बच्चों को सरकारी नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण दिलाने की कोशिश की पर इसमें सफलता नहीं मिल पाई। 1939 में किसानों को टैक्स बढ़ाने और बेदखली से मुक्ति दिलाने के लिए जमीन उपयोग का बिल तैयार किया गया।
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1939 में ऋण निर्मोचन विधेयक पास कराकर चौधरी साहब ने लाखों गरीब किसानों को कर्जे से मुक्ति दिलाई। इसी साल निजी सदस्यों के संकल्प के तहत उन्होंने कृषि उत्पादन मंडी विधेयक पेश किया, जिसमें किसानों को बिचौलियों से मुक्त कराकर वाजिब दाम दिलाने का प्रावधान था, इसी मसले पर उन्होंने 31 मार्च और एक अप्रैल, 1932 को हिंदुस्तान टाइम्स में एग्रीकल्चर मार्केटिंग पर अनूठा लेख लिखा, जिसकी देशभर में चर्चा हुई। उनके सुझावों को कई सरकारों ने क्रियान्वित किया, इसमें पहला राज्य पंजाब था।
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ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत की विधानसभा ने सर छोटू राम के राजस्व मंत्री रहते हुए वर्ष 1938 में जो पहला ‘कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम’ पारित कर उसे लागू किया था। दरअसल, उसकी परिकल्पना चौधरी चरण सिंह की ही थी। चौधरी चरण सिंह जब पहली बार चुनाव जीतने के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के संसदीय सचिव बने थे, तब चौधरी साहब कृषि उत्पाद मंडी बनाने के लिए एक बिल लेकर आना चाहते थे लेकिन, पंत ने उन्हें मना कर दिया, जिसके बाद चौधरी चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश की ‘यूनाइटेड प्रोविंस लेजिस्लेटिव असेंबली’ में एक ‘प्राइवेट मेंबर बिल’ पेश किया, लेकिन वो बिल पारित नहीं हो पाया, ये बात वर्ष 1937 की है।
चौधरी चरण सिंह की ओर से लाया गया ‘प्राइवेट मेंबर बिल’ पास तो नहीं हो पाया, लेकिन इस बिल की जानकारी जब ब्रिटिश राज के पंजाब प्रांत के राजस्व मंत्री सर छोटू राम को मिली तो उन्होंने उस बिल को मंगवाया, फिर लाहौर स्थित ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत की विधानसभा में कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम 1938 पारित किया गया, जो पांच मई 1939 से लागू हो गया।
1940 में कांग्रेस बड़ी उहापोह में थी कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ें कि नहीं, छोटे स्तर पर व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरूआत हुई, चौधरी चरण सिंह इसमें भी शामिल हुए। जेल गए, फिर छूटे और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में चरण सिंह को फिर मौका मिला। वे अंडरग्राउंड हो गए और एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। पुलिस का आदेश था कि देखते ही गोली मार दी जाए पर चौधरी चरण सिंह सभा करके हर जगह से निकल जाते थे। अंत में गिरफ्तार हो गए। इसके बाद डेढ़ साल की सजा हुई, जेल में ही उन्होंने “शिष्टाचार” किताब लिखी।
वे जातिवाद के कट्टर विरोधी थे और उनके प्रयासों का असर था कि 1948 में उत्तर प्रदेश में राजस्व विभाग ने सरकारी कागजों में जोत मालिकों की जाति नहीं लिखने का फैसला लिया। उन्होंने गोविंद बल्लभ पंत को पत्र लिखकर 1948 में मांग की थी कि अगर शैक्षिक संस्थाओं के नाम से जातिसूचक शब्द नहीं हटाए जाते तो उऩका अनुदान बंद कर दिया जाए। हालांकि यह मसला टलता रहा लेकिन जब वे 1967 में खुद मुख्यमंत्री बने तो सरकारी अनुदान लेने वाली शिक्षा और सामाजिक संस्थाओं को अपने नामों के आगे से जातिसूचक शब्द हटाने पड़े।
आजादी के बाद भारत में सोवियत रूस की तर्ज पर आर्थिक नीतियां लगाई गईं। चौधरी साहब का कहना था कि इंडिया में ये चलेगा नहीं, इसको लेकर चौधरी साहब कहते थे कि किसानों को जमीन का मालिकाना हक देने से ही बात बनेगी। उस वक्त नेहरू का विरोध करना ही बड़ी बात थी लेकिन चौधरी साहब सहकारी खेती के रूसी मॉडल के सख्त खिलाफ थे। राजनैतिक करियर पर असर पड़ा फिर भी चौधरी साहब ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी थी।
चौधरी चरण सिंह जी ने चुनाव लड़ना कांग्रेस से हि शुरू किया। चौधरी चरण सिंह 1952, 1962 और 1967 की विधानसभा में जीते थे। गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी रहे। रेवेन्यू, लॉ, इनफॉर्मेशन, हेल्थ कई मिनिस्ट्री में भी रहे, संपूर्णानंद और चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में भी मंत्री रहे।
1967 में चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़कर भारतीय क्रांति दल नाम से अपनी पार्टी बना ली। राम मनोहर लोहिया का इनके ऊपर हाथ था। उत्तर प्रदेश में पहली बार कांग्रेस हारी और चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री बने। चौधरी चरण सिंह 1967 और 1970 में मुख्यमंत्री बने।
चौधरी चरण सिंह ने अपने मुख्यमंत्री काल में एक मेजर डिसीजन लेते हुए खाद पर से सेल्स टैक्स हटा लिया। सीलिंग से मिली जमीन किसनों में बांटने की कोशिश की पर उत्तर प्रदेश में ये सफल नहीं हो पाया।
इसके बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी तब देश में माहौल गड़बड़ हो गया था, 1975 में इंदिरा ने विवादास्पद डिसीजन लिया और इमर्जेंसी लगा दी। चौधरी चरण सिंह भी जेल में डाल दिए गए। जेल में विरोधी पक्ष लामबंद हो गया और 1977 में लोकसभा के चुनाव हुए। इंदिरा बुरी तरह हारीं और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई। मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने, चौधरी चरण सिंह इस सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे। वित्तमंत्री भी बने।
जनता पार्टी को बनाने में उनका ही आधार और किसान शक्ति सबसे अधिक काम आई। जनता पार्टी के नेताओं, जिसमें आज की भाजपा और तबका जनसंघ भी शामिल था। उसने चौधरी चरण सिंह की पार्टी के चुनाव चिह्न पर ही लोकसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन बड़े आधार के बावजूद चौधरी साहब की जगह मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। चौधरी साहब इस सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री बने लेकिन चौधरी साहब को मोरारजी की नीति पसंद नहीं आई, क्योंकि चौधरी साहब का गरीब, किसान, मजदूर एजेंडा मोरारजी को नापसंद था, फिर भी चौधरी साहब के कारण जनता पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में कृषि को सबसे अधिक प्राथमिकता और किसानों को उपज के वाजिब दाम का भी वायदा किया गया, गांव के लोहार और बुनकर से लेकर कुम्हारों औऱ अन्य कारीगरों के उत्थान का खाका भी बुना गया।
1979 में वित्त मंत्री और उप-प्रधानमंत्री रहने के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना कराई और वित्त मंत्री रहते हुए ही खाद और डीजल के दामों को कंट्रोल किया। खेती की मशीनों पर टैक्स कम किया। इनके अलावा कृषि जिंसों की अन्तर्राज्यीय आवाजाही पर लगी रोक हटा दी। लेकिन इसी वजह से जनता पार्टी में कलह हुई और मोरार जी की सरकार गिर गई। बाद में कांग्रेस के ही सपोर्ट से 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने। बहुमत साबित करने के लिए 20 अगस्त तक का टाइम दिया गया था। इंदिरा ने 19 अगस्त को समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। संसद का बगैर एक दिन सामना किए चरण सिंह को रिजाइन करना पड़ा था।
प्रधानमंत्री रहते हुए चरण सिंह ने ग्रामीण पुनरुत्थान मंत्रालय की स्थापना की। फिर बाद में किसान जागरण के लिए ही उन्होंने 13 अक्तूबर 1979 से असली भारत साप्ताहिक अखबार शुरू किया था। उन्होंने देश में सबसे बेहतरीन जमींदारी उन्मूलन कानून पारित कराया। 1952 में भूमि सुधार और जमींदारी उन्मूलन कानून पारित होने के बाद चकबंदी कानून और 1954 में भूमि संरक्षण कानून बनवाया, जिससे वैज्ञानिक खेती और भूमि संरक्षण को मदद मिली थी।
आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह ने जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार कानून बनाकर जमींदारी प्रथा समाप्त कर दिया और किसान भूमिधर बन गए। जमींदारी खत्म होने से दम तोड़ती हुई सामंतशाही ने पटवारियों के माध्यम से फिर से किसानों की जमीन को धोखे से हासिल करना शुरू कर दिया। इसके बाद चौधरी चरण सिंह ने पटवारियों को कड़ी चेतावनी दी। तिलमिलाहट में हजारों पटवारियों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया। उन्हें विश्वास था कि सरकार को उनके सामने घुटने टेकने पड़ेंगे, लेकिन चौधरी साहब के दृढ़ निश्चय ने पटवारियों को घुटनों के बल झुकने को मजबूर कर दिया। उन्होंने सभी त्याग पत्र स्वीकार कर उनके स्थान पर लेखपालों की भर्ती कर दी।
1954 में योजना आयोग ने निर्देश दिया कि जिन जमींदारों के पास खुद काश्त के लिए जमीन नहीं है, उनको अपने आसामियों से 30 से 60 फीसदी भूमि लेने का अधिकार मान लिया जाए। चौधरी साहब के हस्तक्षेप से यह सुझाव यूपी में नहीं माना गया लेकिन अन्य प्रदेशों में इसकी आड़ में गरीब किसानों से भूमि छीन ली गई। इसके बाद 1956 में चौधरी चरण सिंह की प्रेरणा से ही जमींदारी उन्मूलन एक्ट में यह संशोधन किया गया कि कोई भी वह किसान भूमि से वंचित नहीं किया जाए, जिसका किसी भी रूप में जमीन पर कब्जा हो।
चौधरी चरण सिंह नेहरू की आर्थिक नीतियों के कटु आलोचक थे और अंततः चौधरी चरण सिंह ही सही साबित हुए, जब 21वीं सदी में आकर भारत सरकार ने उद्योग की बजाय कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का ‘प्राइम मूविंग फोर्स’ स्वीकार किया।
पांच अप्रैल 1938 को यूनाइटेड प्रोविंस एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग बिल पेश किया।
पांच अप्रैल 1939 को 50% प्रशासनिक पद खेतिहर अथवा गांवों के निवासियों के लिए आरक्षित रखने का प्रस्ताव कांग्रेस विधायक दल की कार्य समिति के समक्ष रखा।
अप्रैल 1939 में ही जोतदारों को जमीन का स्वामित्व दिलाने की दृष्टि से संयुक्त प्रांत धारा सभा में लैंड यूटिलाइजेशन बिल (भूमि उपयोग बिल) पेश किया।
17 मई 1939 को ऋण निवृत्ति बिल संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) धारा सभा में पारित कराया जिससे प्रांत के लाखों किसान ऋण मुक्त हुए।
तीन जून 1947 को यूनाइटेड प्रोविंस गांव हुकूमत बिल पारित कराया।
एक जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश विधानसभा में जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम लागू कर जमीदारी प्रथा को समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू की।
सात मार्च 1953 में पटवारी व्यवस्था की जगह लेखपाल व्यवस्था लागू कर किसानों को पटवारियों के शिकंजे से मुक्ति दिलाई।
आठ मार्च 1953 में ही चकबंदी अधिनियम बनाया जो 1954 से लागू हुआ जिससे कृषि लागत में कमी मानव श्रम में बचत तथा कृषि उद्योग में वृद्धि हुई।
1954 में भूमि संरक्षण अधिनियम पारित कराया जिसके तहत मिट्टी के वैज्ञानिक परीक्षण की व्यवस्था थी 1961 में इसी कानून को व्यापक रूप देते हुए भूमि व जल संरक्षण अधिनियम बनाया।
कृषि आयकर अधिनियम 1956 समाप्त कर एक जुलाई 1957 से वृहत जोत कर अधिनियम 1956 लागू किया जिससे बड़े भूमिधरो द्वारा कर चोरी पर रोक लगाने में मदद मिली।
1958 को कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में पंडित नेहरू के सरकारी खेती के प्रस्ताव का प्रभाव पूर्ण विरोध किया, जिसके चलते प्रदेश के किसान सहकारी खेती के शिकंजे से बच गए।
1961 में उत्तर प्रदेश के गृह मंत्री पद पर रहते हुए सब इंस्पेक्टर पद के हरिजन प्रशिक्षणार्थियों के लिए मुरादाबाद पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज में 1000 अग्रिम जमानत राशि जमा कराने का नियम समाप्त कराया और उन्हें 80 रुपये प्रतिमाह अनुदान देने का आदेश पारित किया।
पहली बार तीन अप्रैल 1967 एवं दूसरी बार 17 फरवरी 1970 को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्रीत्व काल के दौरान चौधरी साहब ने किसानों को जोत बही दिलवाई। जिससे उनके भूमि संबंधी रिकॉर्ड में गड़बड़ी ना हो सके।
नहर की पटरियों पर ग्रामीणों के चलने पर लगे ब्रिटिशकालीन कानून को समाप्त कराया।
शिक्षण संस्थाओं के आगे लगे जातिसूचक शब्दों को हटाने अन्यथा उनकी सरकारी सहायता बंद करने संबंधी कानून बनाया। अनुसूचित जाति के एक सदस्य को पहली बार राज्य लोक सेवा आयोग का सदस्य नियुक्त किया। मंत्रिमंडल में हरिजनों के अलावा पिछड़े वर्गों से चार मंत्री लिए।
उर्वरकों से बिक्री कर समाप्त किया।
साढ़े तीन एकड़ तक की जोतो का लगान माफ करने का निर्देश दिया।
सरकारी कामकाज में हिंदी का शत प्रतिशत प्रयोग और 23 तहसीलों में जो उर्दू बहुल थी, सरकारी गजट उर्दू में उपलब्ध कराने की व्यवस्था की।
चौधरी चरण सिंह के अनमोल विचार
1.असली भारत गांवों में रहता है।
2.अगर देश को उठाना है तो पुरुषार्थ करना होगा हम सब को पुरुषार्थ करना होगा मैं भी अपने आपको उसमें शामिल करता हूँ मेरे सहयोगी मिनिस्टरों को, सबको शामिल करता हूँ हमको अनवरत् परिश्रम करना पड़ेगा तब जाके देश की तरक्की होगी।
3.राष्ट्र तभी संपन्न हो सकता है जब उसके ग्रामीण क्षेत्र का उन्नयन किया गया हो तथा ग्रामीण क्षेत्र की क्रय शक्ति अधिक हो।
4.किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होगी तब तक देश की प्रगति संभव नहीं है।
5.किसानों की दशा सुधरेगी तो देश सुधरेगा।
6.किसानों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती तब तक औधोगिक उत्पादों की खपत भी संभव नहीं है।
7.भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वो देश कभी, चाहे कोई भी लीडर आ जाये, चाहे कितना ही अच्छा प्रोग्राम चलाओ वो देश तरक्की नहीं कर सकता।
8.चौधरी का मतलब, जो हल की चऊँ को धरा पर चलाता है.
9.हरिजन लोग, आदिवासी लोग, भूमिहीन लोग, बेरोजगार लोग या जिनके पास कम रोजगार है और अपने देश के ५०% फीसदी किसान जिनके पास केवल १ हैक्टेयर से कम जमीन है, इन सबकी तरफ सरकार विशेष ध्यान होगा।
10.सभी पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों, कमजोर वर्गों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जनजातियों को अपना अधिकतम विकास के लिये पूरी सुरक्षा एवं सहायता सुनिश्चित की जाएगी।
11.किसान इस देश का मालिक परन्तु वह अपनी ताकत को भूल बैठा है।
12.देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है।
जीवन परिचय
नाम – चौधरी चरण सिंह
जन्म तिथि – 23 दिसंबर, 1902
मृत्यु – 29 मई, 1987 (85 वर्ष)
मृत्यु स्थल – दिल्ली भारत
पिता का नाम – चौधरी मीर सिंह
पत्नी का नाम – गायत्री देवी
शिक्षा
विज्ञान स्नातक, कला स्नातकोत्तर और विधि स्नातक।
विद्यालय
सरकारी उच्च विद्यालय, विश्वविद्यालय मेरठ।
भाषा
हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू।
कार्यक्षेत्र
स्वाधीनता संग्राम, राजनीति।
राजनैतिक दल
काँग्रेस और लोक दल।
उपलब्धियां
विशेष योगदान लेखन, स्वाधीनता संग्राम, भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री
रचनाएँ
भूमि सुधार और कुलक वर्ग , भारत की अर्थनीति , गाँधीवादी रुपरेखा की रचना , शिष्टाचार , इकोनॉमिक नाइटमेयर ओफ इंडिया इट्स कोज एंड क्योर ( भारत कि भयावह आर्थिक स्थिति, कारण और निदान ) ‘अबॉलिशन ऑफ़ ज़मीदारी‘, ‘लिजेण्ड प्रोपराइटरशिप‘ और ‘इंडियास पॉवर्टी एण्ड इट्स सोल्यूशंस‘
चौधरी साहब ‘किसानों के मसीहा‘ माने जाते हैं।
प्रधानमंत्री कार्यकाल
28 जुलाई, 1979 – 14 जनवरी, 1980