लोकसभा चुनाव 2024 : भाजपा के उत्तर प्रदेश में हार के कारण

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा का उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन ख़राब रहा। 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को 62 सीटें मिली थी लेकिन इस बार मात्र 33 सीटों पर सिमट गयी। विश्लेषण के बाद भाजपा के हार निन्म कारण है-

  • प्रत्याशियों के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी थी।
  • चुनाव प्रबंधन में पुराने कैडर के कार्यकर्ताओं को महत्व न देकर आया राम गया राम वाले नेता व उनके समर्थकों को महत्व देना।
  • चुनाव में अपने कैडर कार्यकर्ताओं से ज्यादा दूसरे बाहरी नेताओं पर भरोसा करना एवं उन्हें अधिक संसाधन उपलब्ध कराना।
  • भाजपा द्वारा अति पिछड़ों, अति दलितों को वास्तविक लाभ न देकर बयानबाजी तक सीमित रहना।
  • मायावती द्वारा बार-बार प्रत्याशी बदलने से यह परसेप्शन बन गया कि भाजपा के अनुकूल बसपा प्रत्याशी बदल रही थी जिससे गठबंधन को लाभ मिला।
  • संविधान बदल कर आरक्षण को समाप्त करने के विपक्ष के नरेटिव से दलितों में नाराजगी और अप्रत्याशित रूप से गठबंधन का समर्थन किया।
  • पहले चरण से ही राजपूतों की नाराजगी का परसेप्शन शुरू हुआ जो सातवें चरण तक जारी रहा। इस परसेप्शन को हवा देने के लिए राजपूतों की बैठके, सम्मलेन, पंचायतें और राजपूत नेताओं द्वारा बयानबाजी से भी गठबंधन को लाभ मिला। गठबंधन के सहयोगी राजभर व अनुप्रिया पटेल के बयानबाजी से भी कई सीटों पर नुकसान हुआ।
  • एक सबसे महत्वपूर्ण और अहम कारण भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा अपने ही प्रत्याशी के खिलाफ निगेटिव परसेप्शन अनजाने में बनाया गया। यह कहा जा रहा था कि कुर्मी, यादव, मुस्लिम, दलित, राजपूत व अन्य कई जातियां भाजपा के साथ नही है इससे बहुत नुकसान हुआ। जिसके कारण फ्लोटिंग वोट नही मिला। इस अनजाने में किये गए निगेटिव प्रचार का भी लाभ गठबंधन को मिला।
  • 2024 लोकसभा चुनाव में जातीय ध्रुवीकरण 1993 विधानसभा चुनाव (मुलायम सिंह एवं कांशीराम) 2019 लोकसभा चुनाव (अखिलेश एवं मायावती) के गठबंधन से भी ज्यादा रहा। सभी 80 सीटों पर जातीय ध्रुवीकरण धार्मिक ध्रुवीकरण पर हावी रहा। भारतीय जनता पार्टी इस जातीय ध्रुवीकरण को रोकने के लिए संसदीय क्षेत्र के समीकरण के अनुसार जमीनी तैयारी करने में कमजोर साबित हुई।
  • योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनका चेहरा राजपूत नेता के रूप में जाना जाता है। ऐसे में मुख्यमंत्री के सजातीय वोट न मिलना और राजपूत नेताओं के बयानबाजी पर रोक न लगा पाने पर भी सन्देश और संदेह दोनों पैदा करता है। इसका भी लाभ गठबंधन को मिला।
  • कहने को तो यह लोकसभा चुनाव है लेकिन मतदान में राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी भी बूथ पर प्रभावी रही। ग्राम पंचयात स्तर के कर्मचारियों से लेकर जिला और शासन स्तर पर नौकरशाही पूरी तरह हावी रही। जनता में यह धारणा बन गई थी कि सांसद विधायक मंत्री किसी की बात नहीं सुनी जा रही है। अधिकारी जो चाह रहे वही कर रहे है।
  • जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से जनता अपने छोटे-छोटे कार्यों को कराने के लिए कर्मचारियों और नौकरशाही के शरण में गयी जिसका खूब लाभ सरकारी तंत्र ने जनता को लूटा।
  • पुलिस करवाई गैर राजपूतों पर ही होती है और इसके भी कई उदहारण थे जिसको लेकर चर्चा भी होती रही है। जनमानस में नौकरशाही का भय का माहौल बना हुआ था और तमाम घटनाक्रम से यह परसेप्शन बन गया था कि यह राजपूतों की सरकार है।
  • कहने के लिए भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार नहीं है लेकिन जमीनी हकीकत इसके उल्ट है। जनप्रतिनिधियों की सुनवाई नहीं होने के कारण नौकरशाही में लूट का प्रतिशत बढ़ा है। जिससे जनता प्रभावित रही।
  • महगाई एवं बेरोजगारी मुद्दा थी, इस पर भी विशेष ध्यान नहीं दिया गया।
  • पश्चिम उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल में सेना में जाने के लिए युवाओं में काफी उत्साह रहता था लेकिन अग्निवीर योजना से युवाओं में निराशा और सेना में जाने के प्रति रुचि कम हुआ तथा आक्रोश भी था। पूर्वांचल के जनपदों में अक्सर देखगे कि युवा सेना में जाने के लिए फिजिकल दौड़ भाग करके तैयारी करता है।
  • मतदान प्रतिशत लगभग पुराने चुनाव जैसा ही रहा लेकिन ऐसा लग रहा है कि नाराज और उपेक्षित भाजपा कैडर ने बूथ पर मेहनत कम की जबकि योगी सरकार से नाराज मुस्लिम, यादव व अन्य वर्ग के लोगों ने बहुत ही साइलेंट तरीके से गठबंधन के पक्ष में मतदान किया। जिसका लाभ गठबंधन को मिला।
  • लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण से लेकर सातवें चरण तक रैली में प्रधानमंत्री द्वारा योगी आदित्यनाथ की बढ़चढ़ प्रशंसा भी परेशान और उपेक्षित कैडर में निराशा का भाव पैदा किया और उन्हें लगने लगा कि योगी आदित्यनाथ इतने ताकतवर है कि आने वाले दिनों में भी कैडर की सुनवाई केंद्रीय नेतृत्व में भी नहीं हो पाएगी।
  • सरकार की नाराजगी के साथ-साथ संगठन और प्रदेश संगठन प्रभारी दोनों नेताओं का प्रबंधन बूथ स्तर तक कमजोर रहा। दोनों नेताओं के पश्चमी उत्तर प्रदेश से होने के कारण भाषा व भाव के रूप में वैसी आत्मीयता मध्य और पूर्वांचल के कार्यकर्ताओं के बीच नहीं बन पायी। इससे भी नुकसान हुआ।
  • चुनाव में भाजपा सांसदों, विधायकों एवं संगठन के बीच आपस में काफी गुटबाजी भी रही जिससे चुनाव प्रबंधन आपसी तालमेल के साथ बूथ स्तर तक नहीं बन पाया इससे भी नुकसान हुआ।
  • चुनाव के दौरान फैज़ाबाद लोकसभा प्रत्याशी लल्लू सिंह एवं अन्य कई नेताओं द्वारा 400 सीट जीतने पर भाजपा संविधान बदल देगी इस बयान को विपक्ष नरेटिव बनाने में सफल रहा कि भाजपा सरकार में आयी तो संविधान बदल कर दलित एवं पिछड़ों का आरक्षण समाप्त कर देगी। इससे दलित मतदाताओं ने तमाम कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलने के बाद भी आरक्षण छिनने के भय से गठबंधन के पक्ष में मतदान किया।
  • जिन जातीय नेताओं से गठबंधन किया गया उनमें ओम प्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद तीनों परिवार की पार्टी बन कर रह गए और इनके गठबंधन से जैसी उम्मीद थी वैसा लाभ भाजपा को नहीं मिला बल्कि परिवारवाद के कारण इन जातियों के दूसरे नेताओं ने विरोध में गठबंधन का समर्थन किया जिससे भाजपा का नुकसान हुआ।
  • इस चुनाव में सोशल मीडिया का प्रभाव मेनस्ट्रीम मीडिया से ज्यादा रहा। सोशल मीडिया तमाम कारणों से मोदी के खिलाफ रहा। सोशल मीडिया का लाभ भी मिला।