यूरीड मीडिया- कर्ज के जाल में फंसकर एक और हंसता-खेलता परिवार खत्म हो गया। यूपी के सहारनपुर के सर्राफा कारोबारी सौरभ बब्बर और उनकी पत्नी मोना बब्बर ने गंगा नदी में कूदकर जान दे दी। कूदने से पहले दोनों ने सेल्फी ली। उसे अपने दोस्तों को भेजा। साथ में सुसाइड नोट भी था, जिसमें लिखा था- ‘कर्ज में डूबे हुए हैं। ब्याज दे-देकर परेशान हो गए हैं। अब हमसे और ब्याज नहीं दिया जाता। इसलिए मौत को गले लगाने जा रहे हैं। जहां से भी आत्महत्या करेंगे, वहां से सेल्फी भेज देंगे।’
सौरभ और मोना सहारनपुर के रहने वाले थे। दोनों बाइक से करीब 100 किलोमीटर का सफर कर हरिद्वार पहुंचे। फिर वहां से आखिरी सेल्फी लेने के बाद गंगा नदी में कूदकर जान दे दी।
फिलहाल सौरभ का शव मिल गया है। सहारनपुर में उनका अंतिम संस्कार हो गया है। मोना के शव की तलाश की जा रही है।
सौरभ और मोना की शादी 18 साल पहले हुए थी। दोनों के दो बच्चे हैं। बड़ी लड़की 12 साल की है और लड़का 7 साल का है। उनकी सुसाइड से एक हंसता-खेलता परिवार खत्म हो गया है।
हमारे देश में कर्ज या आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या करने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। याद होगा कि पिछले साल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक पूरा परिवार इसी कारण खत्म हो गया था। भोपाल में एक कपल ने पहले अपने दो छोटे बच्चों को जहर दिया और फिर खुद भी जहर खाकर आत्महत्या कर ली।
इसी साल मई में फरीदाबाद में एक ही परिवार के छह लोगों ने नींद की गोलियां खाकर जान देने की कोशिश की थी। परिवार कर्ज में डूबा हुआ था। गनीमत रही कि पांच लोगों को बचा लिया गया, लेकिन 73 साल के बुजुर्ग की मौत हो गई थी।
कर्ज छीन रही जिंदगियां!
ये तो कुछ ही मामले हैं। इंटरनेट पर ढूंढेंगें तो ऐसे ढेरों मामले मिल जाएंगे, जिसमें आर्थिक तंगी और कर्ज ने पूरा का पूरा परिवार ही खत्म कर दिया।
केंद्र सरकार की एजेंसी है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB. इसके आंकड़े बताते हैं कि भारत में कर्ज कितना जानलेवा बनता जा रहा है। एजेंसी पर आत्महत्या के 2022 तक के आंकड़े मौजूद हैं। इससे पता चलता है कि भारत में होने वाली सौ में से हर चौथी सुसाइड कर्ज या आर्थिक तंगी के कारण होती है।
2022 में देशभर में 1.70 लाख से ज्यादा लोगों ने खुदकुशी कर ली थी. इनमें से सात हजार से ज्यादा लोग ऐसे थे जिन्होंने कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या की थी. इस हिसाब से हर दिन औसतन 19 लोगों ने सुसाइड की। आंकड़े बताते हैं कि 2018 से 2022 के बीच पांच साल में कर्ज से परेशान होकर 29 हजार 486 लोग आत्महत्या कर चुके हैं।
कितने कर्जदार हो रहे परिवार?
भारतीय परिवारों पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। नतीजा ये हो रहा है कि इससे बचत नहीं हो पा रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय परिवारों की बचत लगातार कम हो रही है, क्योंकि लोगों पर कर्ज बढ़ रहा है।
2020-21 में घरेलू बचत 23.29 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई थी। ये अब तक का रिकॉर्ड है। लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आ रही है। 2021-22 में ये आंकड़ा गिरकर 17.12 लाख करोड़ और 2022-23 में और गिरकर 14.16 लाख करोड़ हो गया।
आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि भारत में नेट हाउसहोल्ड सेविंग्स यानी शुद्ध घरेलू बचत 47 साल के निचले स्तर पर है। 2022-23 में ये जीडीपी का 5.3% हो गई, जो 2021-22 में 7.3% थी।
बचत इसलिए कम हो रही है, क्योंकि लोगों पर कर्ज बढ़ रहा है. उनकी कमाई का एक हिस्सा कर्ज चुकाने में चला जाता है।
वहीं, नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के आंकड़े बताते हैं कि 2012 में शहरी इलाकों में 22.4% परिवारों पर कर्ज था। 2018 में भी ये आंकड़ा 22.4% ही रहा। लेकिन इसी दौरान कर्जदार ग्रामीण परिवारों का आंकड़ा 31% से बढ़कर 35% हो गया।
एनएसएसओ के आंकड़े बताते हैं कि जून 2018 तक ग्रामीण परिवारों पर औसतन 59 हजार 748 रुपये का कर्ज था। जबकि, शहरी परिवारों पर ये कर्ज लगभग दोगुना था. शहरी परिवारों पर 1,20,336 रुपये का कर्ज था। ये आंकड़ा लगभग छह साल पुराना है और जाहिर है कि इसमें बढ़ोतरी हुई होगी।
हाल ही में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कहा था कि लोग लोन लेकर शेयर मार्केट और म्यूचल फंड में इन्वेस्ट कर रहे हैं। उन्होंने चिंता जताई थी कि एक ओर बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ बढ़ रही तो दूसरी ओर डिपॉजिट में कमी आ रही है। इससे बैंकों के डूबने का खतरा भी है।