अश्लील तस्वीरें, ब्लैकमेलिंग और 100 लड़कियों से गैंगरेप, दिल दहला देगी अजमेर ‘सेक्स स्कैंडल’ की कहानी

राजस्थान का अजमेर ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और पुष्कर मंदिर की वजह से पूरे दुनिया में मशहूर हैं. इस धार्मिक शहर की आबोहवा में साल 1990 से 1992 तक कुछ ऐसा हुआ, जो ना सिर्फ गंगा-जमुनी संस्कृति को कलंकित करने वाला था, बल्कि अजमेर के सामाजिक ताने-बाने पर बदनुमा दाग बन गया. उस वक्त एक स्थानीय दैनिक नवज्योति अखबार में एक ऐसी खबर छपी जिसने सबको हिलाकर रख दिया था.

सेक्स रैकेट का पर्दाफाश
इस खबर में स्कूली छात्राओं को उनकी अश्लील तस्वीरों के जरिए ब्लैकमेल करते हुए उनका यौन शौषण किए जाने का पर्दाफाश किया गया था. ”बड़े लोगों की पुत्रियां ब्लैकमेल का शिकार” शीर्षक से प्रकाशित खबर ने पाठकों के हाथों में अखबार पहुंचने के साथ ही भूचाल ला दिया. क्या नेता, क्या पुलिस, क्या प्रशासन, क्या सरकार, क्या सामाजिक धार्मिक नगर सेवा संगठन से जुड़े लोग सब के सब सहम गए. यह कैसे हो गया? कौन हैं? किसके साथ हुआ?

गर्ल्स स्कूल की लड़कियों का यौन उत्पीड़न
इसके बाद खुलासा हुआ कि एक गिरोह अजमेर के गर्ल्स स्कूल सोफिया में पढ़ने वाली लड़कियों को फार्म हाउसों पर बुला-बुला कर रेप करता रहा और उन लड़कियों के घरवालों को भनक तक नहीं लगी. रेप की गई लड़कियों में आईएएस, आईपीएस की बेटियां भी शामिल थीं. इस पूरे कांड को अश्लील तस्वीरों के जरिए ब्लैकमेल करके अंजाम दिया गया था. पीड़ित लड़कियों की संख्या 100 से अधिक बताई गई थी. इन लड़कियों की उम्र 17 से 20 साल के बीच थी.

 

ऐसे हुई थी इस खौफनाक सेक्स स्कैंडल की शुरूआत
इस कांड की शुरूआत में सबसे पहले फारूक चिश्ती नामक एक शख्स ने पहले सोफिया स्कूल की एक लड़की को फंसाया. उसके साथ रेप किया. इस दौरान उसने उसकी अश्लील तस्वीरें खींच ली. इसके बाद वो इन अश्लील तस्वीरों के जरिए उसे ब्लैकमेल करने लगा. उससे स्कूल की दूसरी लड़कियों को बहला-फुसला कर लगाने के लिए कहने लगा. मजबूरन वो लड़की अपनी सहेलियों को भी फार्म हाउस ले जाने लगी. उन सभी के साथ रेप और ब्लैकमेल का खेल होता रहा.

रेप के वक्त खींच लेते थे तस्वीरें
एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी, इस तरह एक ही स्कूल की करीब सौ से ज्यादा लड़कियों के साथ रेप हुआ. घर वालों की नजरों के सामने से ये लकड़ियां फार्म हाउसों पर जाती थीं. उनके लेने के लिए बाकायदा गाड़ियां आती थीं. घर पर छोड़ कर भी जाती थीं. लड़कियों की रेप करते समय तस्वीरें ले ली जाती थीं. इसके बाद डरा-धमका कर और लड़कियों को बुलाया जाता. स्कूल की इन लड़कियों के साथ रेप करने में नेता, पुलिस, अधिकारी भी शामिल थे.

फारूक चिश्ती था रैकेट का सरगना
इस सेक्स स्कैंडल का मास्टरमाइंड फारूक चिश्ती था. उसके साथ नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती भी शामिल थे. तीनों ही यूथ कांग्रेस के नेता थे. फारूक अध्यक्ष पद पर था. इन लोगों की पहुंच दरगाह के खादिमों तक भी थी. खादिमों तक पहुंच होने के कारण रेप करने वालों के पास राजनैतिक और धार्मिक दोनों ही तरह की शक्तियां थी. रेप की शिकार लड़कियां ज्यादतर हिंदू परिवारों से थीं. रेप करने वाले ज्यादातर मुस्लिम समुदाय थे. इस वजह से पुलिस डरती थी.

साम्प्रदायिक दंगे न हो जाएं, इसलिए पुलिस डर गई
इस कांड के बारे में जानकारी होते हुए भी पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही थी. उसे डर था कि कही साम्प्रदायिक दंगे न हो जाएं और उस संभालना मुश्किल न हो जाए. धीरे-धीरे इस स्कैंडल के बारे में पूरे शहर को पता चल गया. लड़कियों की अश्लील तस्वीरें हवा में तैरने लगी. जिसे मौका मिलता वो हाथ साफ कर लेता. लड़कियों को ब्लैकमेल करके उनके साथ रेप करता. यहां तक निगेटिव से फोटो को डवलप करने वाला टेकनिशियन भी इसमें शामिल हो गया था.

6-7 लड़कियों ने की थी खुदकुशी
समाज में अपनी बेइज्जती होती देख लड़कियां एक-एक करके खुदकुशी करने लगी. उन्हें इस नर्क से निकलने रास्ता जिंदगी को खत्म करना ही समझ आया. क्योंकि परिवार, समाज, पुलिस और प्रशासन तक कुछ नहीं कर रहा था. इस तरह 6-7 लड़कियों की खुदकुशी के बाद मामला संगीन हो गया. इसी बीच दैनिक नवज्योति के एक पत्रकार संतोष गुप्ता ने इस केस पर सीरीज शुरू कर दी. उनकी खबरों ने पुलिस और प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

अखबार के खुलासे ने खोली थी पोल
पत्रकार संतोष गुप्ता ने दूसरी खबर ”छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?” शीर्षक से प्रकाशित किया. खबर के साथ लड़कियों की अश्लील तस्वीरें भी छाप दी ताकि छात्राओं के साथ हो रहे यौन शोषण को खुली आंखों से देखा जा सके. इसके बाद तो पूरे राजस्थान में जैसे कोई तूफान आ गया. तीसरी खबर ”सीआईडी ने पांच माह पहले ही दे दी थी सूचना!” शीर्षक से प्रकाशित हुई. चौथी खबर में प्रदेश के गृहमंत्री का बयान आया ”उन्होंने डेढ़ माह पहले ही देख लिए थे अश्लील छाया चित्र”. इसके बाद क्या था जनता ने सड़कों पर उतर कर अजमेर बंद का ऐलान कर दिया. शासन और प्रशासन पर भारी दवाब पड़ा.

सेक्स स्कैंडल को दबाने के लिए पुलिस ने खेला खेल
नगर के जागरूक संगठन गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए सक्रिय हो गए. स्कूल छात्राओं के साथ यौन शोषण का सारा खेल शहर में सुनियोजित तरीके से मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली युवाओं के द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ किया जा रहा था. इसे लेकर विश्वहिन्दू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों ने मुट्ठियां तान ली. इस मामले के बारे में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत को अवगत कराया गया. उन्होंने एक्शन लेने को कह दिया.

केस की दबाने की कोशिश
इसके बाद तत्कालीन उप-अधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा को पहले मौखिक आदेश देकर मामले की गोपनीय जांच करने को कहा गया. गोपनीय जांच में हुए खुलासे के बाद तो जिला प्रशासन के हाथ पैर ही फूल गए. इसके बाद इस मामले को दबाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने वाकायदा प्रेस कांफ्रेस करके इस सेक्स स्कैंडल को ही झूठा करार दे दिया. यहां तक कि उन्होंने चार लड़कियों के चरित्र पर ही सवाल खड़े कर दिए.

सीआईडी सीबी को दी गई थी जांच
पुलिस महानिरीक्षक के बयान अखबारों में सुर्खियां बनने के बाद अजमेर ही नहीं राजस्थान भर में आंदोलन शुरू हो गए. इस सेक्स स्कैंडल की चर्चा पूरे देश में होने लगी. आखिरकार चौतरफा दबाव के बीच 30 मई 1992 को भैरोंसिंह शेखावत ने केस सीआईडी सीबी के हाथों में सौंप दिया. इसके बाद इस मामले में अजमेर पुलिस ने भी रिपोर्ट दर्ज कर लिया. इसके अगले ही दिन सीनियर आईपीएस अधिकारी एन.के पाटनी अपनी पूरी टीम के साथ अजमेर पहुंच गए.

सीआईडी सीबी की एंट्री के बाद पकड़े गए आरोपी
31 मई 1992 से इस केस की जांच शुरू कर दी. इस जांच में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, प्रवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी, महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना और हरीश तोलानी नामक अपराधियों के नाम सामने आए. इनमें शामिल हरीश तोलानी अजमेर कलर लैब का मैनेजर हुआ करता था.

स्थानीय अदालत ने आठ लोगों को दी थी उम्र कैद की सजा
इसके बाद पीड़ित लड़कियों से आरोपियों की पहचान करवाने के बाद पुलिस ने आठ को गिरफ्तार कर लिया. साल 1994 में आरोपियों में से एक पुरुषोत्तम ने जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद खुदकुशी कर लिया. इस केस का पहला निर्णय छह साल बाद आया, जिसमें अजमेर की अदालत ने आठ लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई. इसी बीच फारूक चिश्ती ने अपना मेंटल बैलेंस खो दिया. उसकी वजह से उसकी ट्रायल पेंडिंग हो गई.

19 साल बाद पकड़ा गया था एक आरोपी
कुछ समय बाद में कोर्ट ने चार आरोपियों की सजा कम कर दी. उन्हें उम्रकैद की बजाए दस साल जेल की सजा दी गई. इसके बाद राजस्थान सरकार नें सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दे डाली. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. इस कांड के 19 साल बाद एक आरोपी सलीम नफीस को साल 2012 में पुलिस ने पकड़ा था, लेकिन वो भी जमानत पर रिहा हो गया. गया. देश के सबसे बड़े सेक्स स्कैंडल में कई पीड़ितों को इंसाफ का इंतजार था.

अब 6 दोषियों को मिली उम्रकैद की सजा
32 साल पहले हुए अजमेर गैंगरेप और ब्लैकमेल कांड के बाकी बचे 6 आरोपियों को स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने दोषी माना है. मंगलवार को अदालत दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. दोषी नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, सोहिल गणी, सैयद जमीर हुसैन कोर्ट पहुंच चुके हैं, जबकि इकबाल भाटी को दिल्ली से लाया जा रहा है. साल 1992 में 100 से ज्यादा स्कूल और कॉलेज छात्राओं के गैंगरेप और ब्लैकमेलिंग मामले में 18 आरोपी थे. 9 को सजा सुनाई जा चुकी है. एक आरोपी दूसरे मामले में जेल में बंद है. एक सुसाइड कर चुका है और एक फिलहाल फरार है. बाकी बचे 6 दोषियों को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है.