फारूक, गांधी, मुफ्ती का वर्चस्व टूटेगा या सफल होगी मोदी की रणनीति ?

राजेन्द्र द्विवेदी- जम्मू कश्मीर पुनर्गठन के बाद दो चरणों के चुनाव बिना डर और दवाब के शांतिपूर्वक संपन्न हो गए। दूर दराज ग्रामीण क्षेत्रों के बूथ पर भी शहरों की तरह मतदान हुआ है। आखरी चरण का मतदान 1 अक्टूबर को पूरा हो जायेगा। मतगणना 8 अक्टूबर को होगी। चुनाव परिणाम तय कर देगा कि सरकार परिवारवादियों की बनेगी या फिर जम्मू कश्मीर भाजपा को समर्थन देकर नया इतिहास रचेगा। इस चुनाव पर देश ही नहीं दुनिया की निगाहें लगी है क्योंकि 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जब एक साहसिक निर्णय लेते हुए 70 वर्षों से विवाद का जड़ बने धारा 370 और 35 A को हटाया। राज्य का विभाजन करके लद्दाख और जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश गठित किया। इस निर्णय से देश ही नहीं पूरी दुनिया में हलचल हुई थी और निर्णय के पक्ष और विपक्ष में प्रतिक्रिया आयी। फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने धमकी दे डाली थी कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से जम्मू कश्मीर जल जायेगा और बहुत खून खराबा होगा। लोकतंत्र समाप्त हो जायेगा। जिन शर्तों के साथ विलय हुआ था वह भी टूटेगा लेकिन इनकी धमकियों को देश दुनिया के साथ साथ जम्मू कश्मीर की जनता ने नकार दिया न कश्मीर जला और न खून खराबा हुआ। इतना जरूर रहा कि पत्थर बाज नौजवान गायब हो गए। अवाम को विकास का लाभ मिला।

आजादी के बाद से 2014 तक निरन्तर फारुख-मुफ़्ती एवं गांधी परिवार का ही वर्चस्व रहा। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद 2014 में चुनाव हुए और किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। 52 दिनों के राष्ट्रपति शासन के बाद 1 मार्च 2015 को पहली बार भाजपा ने सत्ता में भागीदारी की और पीडीपी नेता मुफ़्ती मोहम्मद सईद को मुख्यमंत्री बनाया। मुफ़्ती 312 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे और उनके निधन के बाद फिर 88 दिनों तक राष्ट्रपति शासन रहा। 4 अप्रैल 2016 को मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ़्ती ने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाया और 2 वर्ष 77 दिन गठबंधन की सरकार चली। 20 जून 2018 को भाजपा ने समर्थन वापस लिया और राष्ट्रपति शासन लागू हुआ।

राष्ट्रपति शासन और मुफ़्ती सरकार में सत्ता में भागीदारी करके भाजपा ने अपने उस एजेंडे की फूल प्रूफ तैयारी कर ली जिसे 5 अगस्त 2019 को संवैधानिक दायरे में लाकर पूरा किया। राज्य का विभाजन हुआ और तमाम उतार चढ़ाव और राजनीतिक बयानबाजी के बीच गुजरे 5 वर्षों में मोदी सरकार ने बड़े ही दृढ़ता और साहसी निर्णय के साथ परिसीमन कराया। जम्मू में 6 और कश्मीर में 1 सीट की संख्या बढ़ाई। विकास कार्य के लिए कई गुना धनराशि दिया। आतंकवादियों की कमर तोड़ी। पंचायतों के चुनाव कराये। इससे जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत कराई। यह जरूर रहा कि इस बीच फरवरी 2019 में पुलवामा में बहुत दुखद घटना घटी, जिसमें देश के 45 जवान शहीद हो गए लेकिन शहीदों का बदला मोदी सरकार ने एयर स्ट्राइक करके लिया। आतंकवादी और उनके समर्थक तथा पकिस्तान को यह सन्देश देने में सफल रहे कि अब बहुत हो गया है, अगर घटना करोगे, बन्दूक चलाओगे तो उसका जवाब तोप से दिया जायेगा। स्थितियां बदली, चुनाव कार्यक्रम घोषित हुए। 2 चरणों के चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गए। यह भारत निर्वाचन आयोग और मोदी की सफलता के रूप में है। तीसरा चरण पूरा होने और मतगणना के बाद नयी सरकार किसकी होगी यह तो परिणाम तय करेंगे लेकिन जो दहशतगर्दी, विरोध, लूट और मुफ़्ती-गांधी और फारुख परिवार का वर्चस्य रहा वह दो चरणों के मतदान ने हिला दिया है।

चुनाव में मोदी-शाह, राहुल ने अपने-अपने तरीके से कश्मीर के मतदाताओं को रिझाने, समझाने का प्रयास किया। दो परिवार गांधी और फारुख का गठबंधन है। पीडीपी अलग चुनाव लड़ रही है। इंजीनियर रशीद जिन्होंने उमर अब्दुल्ला को हराया था उनकी पार्टी तथा अन्य छोटे-छोटे दल चुनाव मैदान मैं है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि जिस भाषा और धमकी का प्रयोग मुफ़्ती और फारुख करते थे वह भाषा बदली है। कांग्रेस के बड़े नेता रहे गुलाम नवी आज़ाद कांग्रेस छोड़ने के बाद गायब है।

यूरीड मीडिया की टीम ने जम्मू कश्मीर के दौरे के समय मतदाताओं से जो बातचीत किया उसमें परिवारवादी पार्टी के लूट के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी दिखी। परिवार के वर्चस्व को तोड़कर नया बदलाव भी चाहते है केवल आशंका और डर यह है कि 370 और 35 A का लाभ उठा कर जम्मू के बाहर के लोग जमीन जायदाद खरीद कर अधिक संख्या में बस न जाये। 5 अगस्त 2019 में राज्य पुनर्गठन के बाद नए कानून के तहत किसी बाहरी ने जम्मू कश्मीर में प्रापर्टी बनाया है ऐसा दस्तावेज की जानकारी जनता को नहीं है। परिणाम तय कर देगा कि फारूक, गांधी, मुफ्ती परिवारों का वर्चस्व टूटेगा या मोदी की रणनीति सफल होगी।