संगठन में फेल, संसद में कितनी सफल होंगी प्रियंका ?

राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- उम्र में 2 साल छोटी लेकिन राहुल गांधी से पहले सियासत में कखग सीखने वाली प्रियंका वाड्रा 23 अक्टूबर 2024 को केरल के वायनाड से नामांकन करके इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में प्रवेश किया है। जबकि राहुल गांधी 2004 से लगातार सांसद हैं। इसमें 2004 से 2019 तक अमेठी, 2019 से 2024 तक वायनाड और वर्तमान में रायबरेली का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जबकि प्रियंका गाँधी श्रीमती सोनिया गाँधी का चुनाव प्रबंधन 1998 और राहुल गाँधी का 2004 से देख रही हैं। एक समय था जब लोग प्रियंका को ही कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए देखना चाहते थे क्योंकि राहुल गाँधी की छवि सीधे, सरल और शांत दिखाई देती थी इसलिए अमेठी के कार्यकर्ता और पत्रकार रहे जगदीश पियूष वाल-लाइट और नारा लगवाते थे “अमेठी का डंका, बिटिया प्रियंका”। कांग्रेस में छोटे बड़े सभी नेता परसेप्शन बनाने में लगे थे और कहते थे कि प्रियंका गाँधी में दादी इन्दिरा गाँधी का अक्स दिखाई देता है। इसके पीछे तर्क था कि प्रियंका जनता की भावना को समझती है। अच्छी वक्ता हैं और तेज तर्रार तेवर वाली युवा महिला अमेठी और रायबरेली में मां और भाई के बूथ प्रबंधन 1998 से लेकर 2024 तक लगातार देख रही हैं। निश्चित रूप से उनकी कार्यशैली और जनता से कनेक्ट होने की स्टाइल एक परिपक्व नेता के रूप में दिखाई देता हैं। इसी को देखते हुए 2014 और 2019 में सोनिया व राहुल के नेतृत्व में मिली करारी शिकस्त के बाद प्रियंका को कांग्रेस नेतृत्व देने की बात उठने लगी और पार्टी के अन्दर राहुल एवं प्रियंका समर्थक दो गुट बन गए। 2019 लोकसभा चुनाव के पहले प्रियंका गांधी 23 जनवरी 2019 को सक्रिय राजनीतिक में औपचारिक रूप से राष्ट्रीय महासचिव के रूप में प्रवेश किया और उत्तर प्रदेश की पूर्वी क्षेत्र की प्रभारी बनाई गई। पश्चिम क्षेत्र के प्रभारी तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में मोदी कैबिनेट में मंत्री ज्योति आदित्यनाथ सिंधिया को बनाया गया। 
 
राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी के नेतृत्व में 2019 में भी कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली। नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए 54 सीटें भी नहीं जीत सके। जिसके कारण नैतिकता के आधार पर हार की जिम्मेदारी लेते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ दिया और यह घोषणा भी कर दी कि अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधी परिवार का नहीं होगा। जबकि प्रियंका गाँधी के प्रभारी और संगठन के महासचिव के रूप में उत्तर प्रदेश की परिवार की परंपरागत सीट अमेठी से राहुल गाँधी हार गए। मात्र एक सीट रायबरेली से सोनिया जीती। राहुल की तरह प्रियंका ने शर्मनाक हार के लिए नैतिकता के आधार पर महासचिव का पद और प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। मध्य प्रदेश चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार को तोड़कर भाजपा की सरकार बनवाने वाले ज्योति आदित्यनाथ सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद प्रियंका गाँधी को 11 सितम्बर 2020 को महासचिव के साथ पूरे उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनाया गया। प्रियंका ने उत्तर प्रदेश में बहुत जोर- शोर के साथ बयानबाजी और प्रदेश का दौरा करके सपा से ज्यादा योगी सरकार पर हमलावर रही। “लड़की हूँ लड़ सकती हूँ” नारे के साथ 2022 विधानसभा चुनाव में 40% महिलाओं को टिकट दिया। पूरी तरह से चुनाव की कमान उनके हाथ में रही लेकिन 2019 की तरह 2022 में भी कांग्रेस को शर्मनाक हार मिली। मात्र 2 विधायक चुने गए और मात्र 2.33% मत रह गया। इस करारी शिकस्त के बाद प्रियका गाँधी ने महासचिव का पद नहीं छोड़ा हालांकि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले उनसे प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी छीन ली गयी। राहुल गाँधी के इस्तीफ़ा देने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष न होने पर कांग्रेस पर सवाल उठते रहे। यह चर्चा थी कि पार्टी का एक धड़ा प्रियंका को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाना चाहता था लेकिन राहुल गांधी, गांधी परिवार के अध्यक्ष बनाये जाने के पक्ष में नहीं थे। परिणाम स्वरूप वरिष्ठ नेता और दलित चेहरा मल्लिकर्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। 
 
प्रियंका के सक्रिय सियासत में आने के बाद भाषणों में जो भी आक्रामक, जन संपर्क विभिन्न घटनाओं के खिलाफ, भाजपा सरकार के विरोध के बाद भी घटनास्थल पर पहुची। लखीमपुर खीरी किसानों के हत्या के प्रकरण में जाने का प्रयास करना, पुलिस के गिरफ्त में रहना। बहुत सारे सकारात्मक और संघर्ष के उदाहरण है लेकिन निष्पक्ष और ज़मीनी हकीकत को देखे और उसका विश्लेषण करे तो प्रियंका गाँधी सक्रिय सियासत में आने के बाद उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से फेल रही। संगठन की मजबूती और चुनाव परिणाम दोनों में प्रियंका गांधी पूरी तरह असफल रही। उत्तर प्रदेश में उनको लेकर बड़े-बड़े दावे होते रहे कि वह लखनऊ में रहेंगी इसके लिए आवास भी तैयार किया गया। कार्यकर्ताओं में उत्साह भी बढ़ा और विशेषकर “लड़की हूँ लड़ सकती हूँ” नारे के साथ महिलाओं में कांग्रेस के प्रति समर्थन भी दिखाई दिया लेकिन जैसा संघर्ष और समय, संगठन और चुनाव में देना चाहिए वह देने में फेल रही। वरिष्ठ कोंग्रेसी नेता जो नेहरू-गाँधी परिवार से पीढ़ी दर पीढ़ी वर्षों से जुड़े थे वह प्रियंका के कार्यशैली से हट गए और नए नेताओं को जोड़ना की क्षमता नहीं रही।राहुल गांधी ने देश में पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण हजारों किलोमीटर पद यात्रायें की। मोदी पर सीधा और तीखा हमला किया। देश में ऐसा परसेप्शन बन गया कि राहुल गाँधी ही मोदी को चुनौती दे रहे है। वैसे यह परसेप्शन नहीं हकीकत भी है। कांग्रेस व दूसरे दलों के बड़े- बड़े नेता जांच एजेंसियों के डर के कारण चुप रहे या भाजपा में शामिल हो गए। राहुल गांधी की छवि जो 2014 के बाद “पप्पू” की बनाने का प्रयास भाजपा ने किया था उसे उन्होंने पद यात्रा, जनसम्पर्क और दृढ़ता के साथ मोदी और उनके सरकार पर सीधा हमला करके दूर करने में सफल रहे। राहुल के हजारों किलो मीटर पद यात्रा के बाद बनी छवि और जनता का समर्थन को देखते हुए 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन बना, केजरीवाल, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, ममता, लालू यादव, शिबू सोरेन, स्टालिन सहित गैर भाजपा दलों के बड़े बड़े क्षत्रप गठबंधन में शामिल हुए। राहुल ने संविधान और आरक्षण बचाओ का एक ऐसा परसेप्शन जनता में बनाया कि भाजपा 400 सीटों जीत कर संविधान और आरक्षण खत्म कर देगी। इंडिया के नेतृत्व ने भाजपा को 240 सीटों पर समेट दिया। कांग्रेस को 99 सीटें मिली। राहुल के त्याग, संघर्ष और नैतिकता के बनाये प्लेटफार्म पर बहन के रिश्ते के रूप में प्रियका गाँधी ने देश भर में भाषण किया। लेकिन कांग्रेस के बढ़ी ताकत की क्रेडिट प्रियंका को नहीं दी जा सकती। प्रियंका सदन के बाहर संगठन और प्रभारी की सियासत में फेल साबित हुई। वायनाड से जीत सुनिश्चित होने से संसद में पहुंचना लगभग तय है। समय बताएगा कि वह सदन में कितना समय देती है, कितनी तैयारी के साथ सरकार के खिलाफ विभिन्न विषयों पर तथ्यों के साथ अपनी बात पटल पर रखती हैं।