राजेन्द्र द्विवेदी- उत्तर प्रदेश उप-चुनाव परिणाम तय करेगा कि योगी का हिन्दुत्व या अखिलेश का पीडीए कौन ताकतवर है? कहने के लिए 9 सीटों का उप-चुनाव है लेकिन महाराष्ट्र और झारखण्ड राज्यों के विधानसभा चुनाव से ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि लोकसभा चुनाव में मोदी और योगी की डबल इंजन सरकार की 30 सीटें छीन कर अखिलेश राहुल ने मिलकर भाजपा को 33 सीटों पर समेट दिया। सबसे बड़ी हार फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा सीट की रही जिसने भाजपा के हिन्दुत्व धार को कमजोर किया। कहने के लिए इंडिया बनाम एनडीए के बीच चुनाव है लेकिन वास्तविकता यह है कि यह योगी के शासन, हिन्दुत्व एजेंडा और अखिलेश के पीडीए के बीच सीधी लड़ाई है। मोदी या राहुल पर जीत हार का सीधा सम्बन्ध नहीं है। वैसे भी कांग्रेस ने प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है और सपा को सीधा समर्थन दिया है इसलिए जीत हार में कांग्रेस की प्रतिष्ठा सीधी नहीं जुड़ी है। इंडिया गठबंधन की हार-जीत दोनों अखिलेश की मानी जाएगी। दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ 7 वर्षों से लगातार मुख्यमंत्री है उनके देख-रेख में उप-चुनाव हो रहे हैं। मोदी या केंद्रीय नेतृत्व ने योगी को खुली छूट दे रखी है इसलिए हार-जीत से योगी की राजनीतिक हैसियत का आंकलन होगा। भाजपा 9 में कितनी अधिक सीटें जीतेगी, योगी का कद राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा में उतना ही बढ़ेगा। उनके हिन्दुत्व एजेंडे और कानून व्यवस्था पर जनता का समर्थन माना जायेगा और अगर अधिकांश सीटों पर भाजपा हारती है तो योगी का शासन और हिन्दुत्व एजेंडे पर सवाल खड़े होंगे और लखनऊ से दिल्ली तक योगी के विरोधियों को हमला करने का अवसर मिलेगा।
दोनों इंडिया और एनडीए गठबंधन में प्रत्याशियों के चयन में जातीय और स्थानीय समीकरण तथा प्रभावशाली राजनीतिक घरानों को प्रमुखता दी गयी है। लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से ही अखिलेश और योगी दोनों 10 सीटों के उप-चुनाव में जुट गए थे। हालांकि न्यायालय में विचाराधीन होने के कारण सबसे ज्यादा चर्चित और सुर्खियों में रहने वाली मिल्कीपुर में उप-चुनाव नहीं हो रहे हैं। जिन 9 सीटों पर उप-चुनाव हो रहे हैं उनमें हर सीट का समीकरण अलग- अलग हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने प्रत्याशी चयन में ब्राह्मण, ठाकुर, पिछड़े, दलित सबको शामिल किया है जबकि अखिलेश ने दलित, पिछड़े और मुस्लिम(पीडीए) को प्रत्याशी बनाकर पीडीए की रणनीति अपनाई है। बसपा ने पिछड़े, मुस्लिम, ब्राह्मण उम्मीदवारों पर अलग-अलग सीटों पर दांव लगाया है। ओवैसी और पल्लवी पटेल की पीडीएम में पिछड़े, दलित और मुस्लिम को प्रत्याशी बनाया है। सबसे रोचक लड़ाई करहल की है।
करहल- मैनपुरी जनपद की करहल विधानसभा से अखिलेश के भतीजे और लालू प्रसाद यादव के दामाद एवं पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने अखिलेश के चचेरे भाई सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश यादव को प्रत्याशी बनाया है। तेज प्रताप 2014 में मैनपुरी संसदीय क्षेत्र से सांसद भी रह चुके हैं। मायावती ने अवनीश कुमार शाक्य को प्रत्याशी बनाया है लेकिन सीधी लड़ाई यादव बनाम यादव के बीच ही है। जातीय समीकरण में सर्वाधिक 1 लाख 30 हजार से अधिक यादव और दूसरे स्थान पर 60 हजार से अधिक ओबीसी मतदाता हैं। शाक्य 50 हजार, राजपूत 30 हजार, ब्राह्मण 20 हजार, 15 हजार बनिया, 25 हजार मुस्लिम तथा 30 हजार से अधिक पाल, बघेल और अन्य जातियां हैं। इस सीट पर सपा का दबदबा माना जाता है लेकिन भाजपा सरकार है उप-चुनाव है और यादव बनाम यादव जो रिश्तेदारों के बीच की लड़ाई है। परिणाम जो भी हो लेकिन 23 नवंबर मतगणना तक रोमांच बना रहेगा।
कटेहरी- यहाँ पर दलित, अतिपिछड़ों, मुस्लिम के साथ सामान्य वर्ग की भी आबादी लगभग बराबर ही है। दलित, पिछड़े और मुस्लिम समीकरण से गैर भाजपा विधायक बसपा और सपा से जीतते रहे हैं। लालजी वर्मा जो सपा के बड़े कुर्मी नेता हैं उसके सांसद चुने जाने के बाद सीट रिक्त हुई है और उनकी पत्नी को प्रत्याशी बनाया गया है। 2022 में भाजपा समझौते में निषाद पार्टी के अवधेश कुमार चुनाव लड़े थे और मात्र 3 प्रतिशत के अंतर से चुनाव हारे थे। उप-चुनाव में भाजपा ने धर्मराज निषाद को प्रत्याशी बनाया है। संजय निषाद की भूमिका अहम होगी।
मीरापुर सीट भाजपा ने आरएलडी को दिया है यहाँ से मिथलेश पाल प्रत्याशी है। सपा ने सुम्बुल राणा को टिकट दिया है जो दो प्रभावशाली राजनीतिक परिवार की बेटी और बहु है। मुस्लिम बहुल्य सीट पर आरएलडी के लिए बड़ी चुनौती होगी।
इसी तरह अन्य सीटें गाजियाबाद, मझवां, सीसामऊ, खैर, फूलपुर, कुंदरकी के समीकरण है। सभी दलों ने समीकरण के अनुसार अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। नामांकन 25 अक्टूबर को पूरा हो गया। 13 नवंबर को मतदान होगा। मतगणना 23 नवंबर को होगी। किस दल ने किसे प्रत्याशी बनाया है, किस परिवार का है, क्या समीकरण है इस सब का अर्थ जीत-हार से ही माना जाएगा। कौन प्रत्याशी जीता, कौन हारा, इसका कोई अर्थ नहीं है। जीत-हार का सीधा सम्बन्ध योगी और अखिलेश से जुड़ा होगा। जीत और हार दोनों में योगी का शासन और हिंदुत्व एजेंडा तथा अखिलेश के पीडीए ही आमने-सामने होंगे। चुनाव परिणाम में दलित मतदाताओं की भूमिका अहम है क्योंकि कांग्रेस सपा के साथ है नहीं। आरक्षण और संविधान मुद्दा नहीं है। चुनाव केवल अखिलेश और योगी के चेहरे के बीच ही लड़ा जा रहा है। अखिलेश जीतते है तो 2027 में पीडीए फार्मूला के तहत ही अधिकांश प्रत्याशी होंगे और अगर हार होती है तो पीडीए के फार्मूला पर ही प्रश्न चिन्ह लगेगा ? दूसरी तरह भाजपा की जीत योगी के शासन और हिंदुत्व एजेंडे पर मोहर लगाएगी और इसे ही 2027 में भाजपा सवर्ण, दलित और पिछड़ों के साथ हिंदुत्व एजेंडे पर मैदान पर होगी। अगर भाजपा हारती है तो योगी के शासन और हिंदुत्व एजेंडे पर सवाल उठेंगे। इसलिए यह उप-चुनाव परिणाम 2027 के लिए एक मार्ग दर्शन का कार्य करेगी। भाजपा उपचुनाव जीती तो योगी का कद भाजपा में बढ़ेगा। अखिलेश देश में तीसरे सबसे बड़े 37 सांसदों की पार्टी के नेता है। सपा उप-चुनाव जीतती है तो अखिलेश का कद और प्रभाव इंडिया गठबंधन में अधिक बढ़ेगा। राहुल के बाद सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत और आवाज़ अखिलेश की होगी। यही नहीं जीत-हार से राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक समीकरण भी बदलेंगे।