राजेन्द्र द्विवेदी- देश ही नहीं दुनिया भर में भ्रष्ट अफसरों ने भ्रष्टाचार का एक रिकॉर्ड बना दिया है। यह भ्रष्ट अफसर होशियार इतने है कि नेताओं को फाइलों के अनुसार भ्रष्टाचार करने का जबरदस्त प्रशिक्षण देते हैं। क्योंकि नेता जनता द्वारा चुना जाता है। उसकी बहुत सारी मजबूरियाँ होती है। चुनाव लड़ने के लिए जनता का वादा पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत होती है। देश में चुनाव इतने महंगे हो गए है कि करोड़ों रुपया खर्च होते हैं यह धनराशि चंद नेताओं के पास हो सकती है। 99 प्रतिशत नेता किसी ना किसी से आर्थिक मदद लेकर चुनाव लड़ते है और बहुमत मिलने पर सरकार बनाते हैं। भारतीय नौकरशाह बहुत बड़ा मौसम वैज्ञानिक होता है। बड़े ही सुनियोजित तरीके से एक सरकार में रहते हुए अरबों कमाता है। और जनता का मूड देखकर आने वाले दूसरे नेताओं पर भ्रष्टाचार की कमाई की लागत लगा देता है। परिणाम आने के बाद जब नेता सत्ता की बागडौर संभालता है तो भ्रष्ट नौकरशाह उसे भरोसे में लेकर अपने योग्यता और बुद्धि का पूरी तरह से नेता पर खर्च करता है और उसे यह बताता है कि आप की आर्थिक आवश्यकताएँ कैसे पूरी हो सकती हैं। नेता को जानकारी नहीं होती कि उसे धन कहाँ से मिलता है, मिलेगा लेकिन आवश्यकताएं होती है। मजबूरी में राजनीति करने और सत्ता में बने रहने व चुनाव लड़ने के लिए नेता पैसा कमाने के लिए भ्रष्ट नौकरशाह के चंगुल में फंस जाता है। धीरे-धीरे सप्ताह में हर फाइलें अपने तरीके से नेता से निस्तारित करके लूट करता है। इस लूट में नौकरशाह पहले से ही अनुभव वाला है। इसलिए विश्वसनीय बिचौलियों की टीम के माध्यम से नेता की आवश्यकताएँ पूरी करता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि लूट का पैसा कमाने वाला नेता-नौकरशाह नेक्सस में नेता की अवैध अधिकांश कमाई चुनाव एवं मतदाताओं के हित में खर्च होता है जबकि नौकरशाह लूटी हुई धनराशि से नए-नए शातिर भ्रष्टाचारी उद्योगपति पैदा कर देता है।
भ्रष्ट नौकरशाहों के पैसों से छोटे-छोटे शातिर दिमाग वाले व्यवसायी रातों रात बड़े उद्योगपति की श्रेणी में भ्रष्टतम व्यवस्था का लाभ उठाकर शामिल हो जाते हैं। जिस तरह से देश में भ्रष्ट नौकरशाहों चपरासी, पीए, रिश्तेदारों के पास अप्रत्याशित रूप से जांच होने पर करोड़ों-करोड़ों कैश व सम्पत्ति मिलती है यह भी पूरा देश देखता है। भ्रष्ट नौकरशाह का एक जबरदस्त कॉकस जांच एजेंसियों में भी होता है और शिकायत होती है तो सबसे पहले नेता व दूसरे भ्रष्ट एजेंसियों के माध्यम से जांच की फाइल को ही दबवा देते है। ज्यादा चर्चित मामला हुआ तो मजबूरी में ईमानदार अफसर जांच की पहल कर भी दिए तो छापे के बाद जांच में मिले अरबों की सम्पत्ति में ताकतवर नौकशाह कोर्ट-कचहरी व अन्य तमाम सारे माध्यमों से उलझा देते है। पूरे व्यवस्था को भ्रष्ट करने के सबसे अधिक जिम्मेदार नौकरशाह ही होता है।
2014 के पहले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्विस बैंक में जमा धनराशि लाने का वादा भी किया था। कुछ नाम भी स्विस बैंक में जमा करने वालों के चर्चा में आये थे उसमें बहुमत भ्रष्ट नौकरशाहों का ही रहा। यह माना जा रहा है कि राष्ट्रीय हो या अंतर्राष्ट्रीय समस्त डील में नौकरशाह ही शामिल होता है वह किसी भी कैडर का क्यों न हो अहम भूमिका उसी की होती है। निष्पक्ष और ईमानदार सरकार द्वारा देश के भ्रष्ट नौकरशाहों द्वारा केंद्र हो या राज्य जहाँ भी कार्यरत रहे उनके जांच हो जाये। तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार के लूट की धनराशि और छोटे-छोटे छापों में मिलने वाले अरबों रूपये को देख कर यह कहा जा सकता है कि नौकरशाहों की अवैध कमाई देश के वाइट मनी से दोगुने से भी अधिक होगी। केंद्र एवं राज्य सरकारें बार-बार निर्देश देती हैं। अधिकारी अपने आय-व्यय का लेखा जोखा सरकार के सम्बंधित विभागों में जमा करें। सरकार के निर्देशों का औपचारिकता निभाते हुए पालन भी होता है लेकिन अवैध कमाई मकान एवं सम्मति के रूप में होती है उसका उल्लेख नहीं होता है जबकि सोशल ऑडिट में भ्रष्ट अधिकारी का नाम जग जाहिर होता है। किसी मंत्रालय विभाग अन्य व्यावसायिक संस्थाओं के यहाँ कार्य कराने के लिए कौन सक्षम है और भ्रष्टतम व्यवस्था में कैसे मदद करेगा उन अधिकारियों के नाम चर्चित होते है। 1991 से लेकर 2024 तक पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव सरकार से लेकर मोदी सरकार तक उदारीकरण के दौर में जनता की गाढ़ी कमाई राष्ट्र के संपत्तियां और निर्माण के नाम पर नौकरशाहों ने नेताओं के साथ मिलकर लूट का एक इतिहास रचा है जो किसी से छुपा नहीं है। देश में लूट करने के बाद उदारीकरण के दौर में विदेशों से लूट का बहुत बड़ा रास्ता भ्रष्टतम, देशद्रोही, तथाकथित नए उद्योगपतियों के साथ मिलकर नौकरशाहों ने बहुत बड़ा नेक्सस तैयार किया है इसमें सीमापार से आने वाला ड्रग भी एक अभिशाप के रूप में नौजवानों के लिए बन गया है। हर महीने अरबों खरबों के ड्रग पकड़ें जा रहे हैं। इसमें भी भ्रष्टतम नौकरशाह ही ड्रग स्मगलरों को संरक्षण देने वाले हैं क्योंकि ड्रग स्मगलरों को पकड़ने की जिम्मेदारी भी जांच एजेंसियों की होती है जिसके मुखिया भी नौकरशाह होते हैं। देश के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी को दुनिया में दूसरे नंबर पर उद्योगपति की श्रेणी में लाने वाले के पीछे भारतीय भ्रष्ट नौकरशाहों की अहम भी भूमिका रही है। हालांकि छोटे-छोटे झटके लगने के बाद दुनिया के नंबर 22वे स्थान पर है।
नौकरशाही अपने लाभ के लिए ताकतवर नेताओं और सत्ता के नजदीक रहने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं से भी अधिक विश्वासपात्र बन जाते हैं। इसी विश्वास का लाभ उठाकर नेताओं को उनके आवश्यकतानुसार सत्ता और धंधा में मदद के लिए ऐसा घेरा बना देती है जिससे नेता सत्ता से बाहर होने के बाद ही निकल पाता है। देश हो राज्यों की सरकारें सभी नौकरशाहों के इशारे पर ही चलती हैं। कांग्रेस की सरकार रही हो या मोदी सरकार सबसे अधिक ताकतवर में नाम नौकरशाही का ही आता है हालाँकि इसमें कई ईमानदार भी होते हैं लेकिन ईमानदार की एक सीमा होती है और भ्रष्टतम नौकरशाह की सीमा तय करना मुश्किल होता है।
भ्रष्ट नौकरशाहों के बारे में उपरोक्त छोटा सा लेख एक छोटी सी भूमिका है। वैसे भ्रष्ट नौकरशाही और सबसे बड़े उद्योगपति बनने के बीच अनैतिक गठबंधन एक शोध का विषय है। इसमें कई खण्डों में पुस्तक तैयार हो सकती है। मोदी सरकार में अडानी हो या कांग्रेस सरकार में अम्बानी या दूसरे उद्योगपति हो सबसे भ्रष्ट नौकरशाहों ने अपने साम्राज्य को बढ़ाया है। जिन्हें सरकार का कम संरक्षण मिला वह पीछे हैं और जिन्हें सरकार का खुला संरक्षण मिला वह प्रथम व दूसरे श्रेणी में पहुँच गये।
मोदी सरकार पर राहुल गांधी अडानी-अम्बानी की मदद करने का जो भी आरोप लगाएं वह सही या गलत हो सकता है लेकिन वास्तविकता यह है कि कांग्रेस की सरकार रही हो या मोदी सरकार सभी में नौकरशाहों ने नेताओं के साथ मिलकर अनैतिक लाभ पहुंचाने के लिए बिचौलियों की भूमिका निभाई है। कांग्रेस कार्यकाल में बढ़े अम्बानी या मोदी सरकार में अडानी की हैसियत बनाने में भ्रष्ट नौकरशाही की ही अहम भूमिका है एयरपोर्ट, बंदरगाह, पावर सेक्टर, कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर आदि सभी जिन पर अडानी का कब्ज़ा हुआ है यह डील वरिष्ठतम नौकरशाहों के माध्यम से राज सत्ता के संरक्षण में हुआ है ? हर डील की अगर गहराई से निष्पक्षता पूर्वक जांच की जाये तो वास्तविक पटकथा लिखने वाले ही भ्रष्ट नौकरशाह ही होंगे। नौकरशाह की अहम है। ताजा उदाहरण अडानी का अमेरिका द्वारा लगाया गया आरोप जिसमें भी भ्रष्ट नौकरशाही ही केंद्रबिंदु है। जहाँ धुआं होता है आग वही लगती है। अडानी की सफाई अमेरिका के गंभीर आरोपों पर बहुत ही कमजोर है। डोनाल्ड ट्रम्प जनवरी में नए राष्ट्रपति की कमान सँभालेंगे। ट्रम्प इन आरोपों पर क्या रुख अपनाते है यह महत्वपूर्ण होगा।
अडानी अमेरिका के आरोप की पटकथा
अमेरिका ने गौतम अडानी को ठेका लेने के लिए भारतीय अफसरों को 2250 करोड़ देने का आपराधिक मामला न्यूयॉर्क के न्यायलय में दायर किया किया है और अमेरिकी अभियोजकों का आरोप है कि अडानी ग्रुप ने भारत में सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट्स के ठेके हासिल करने के लिए इंडियन अफसरों को 2250 करोड़ रुपए रिश्वत के तौर पर दिए हैं। लेकिन अडानी ने इस बात की जानकारी अमेरिकी निवेशकों को नहीं दी और बड़े स्तर पर फंडा जुटा लिया। यह आपराधिक मामला है।
सवाल उठ रहा है कि अडानी समूह का प्रोजेक्ट इंडिया में है, लेकिन अमेरिका में भारतीय अफसरों को लेकर कैसे जांच शुरू हो गई है? दरअसल, पूरा मामला अडानी ग्रुप की कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड और एक दूसरे फर्म से जुड़ा हुआ है। 24 अक्टूबर 2024 को ये मामला US कोर्ट में दर्ज किया गया। बुधवार को इसकी न्यूयॉर्क कोर्ट में सुनवाई हुई। अमेरिका के अटॉर्नी ऑफिस का कहना है कि अडानी ग्रुप ने भारत में सोलर एनर्जी से जुड़ा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को करीब 2250 करोड़ रुपए की रिश्वत पेशकश की है। अडानी पर आरोप है कि रिश्वत के इन पैसों को जुटाने के लिए उन्होंने अमेरिकी, विदेशी निवेशकों और बैंकों से झूठ बोला। अमेरिका में मामला इसलिए दर्ज हुआ, क्योंकि प्रोजेक्ट में अमेरिका के इन्वेस्टर्स का पैसा लगा था। अमेरिकी कानून के तहत उस पैसे को रिश्वत के रूप में देना अपराध है।
इस संबंध में अमेरिकी अभियोजकों ने अडानी ग्रुप के अध्यक्ष गौतम अडानी, उनके भतीजे सागर अडानी, विनीत जैन और कंपनी के अन्य 6 अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है। अभियोजकों का कहना है कि राज्यों में बिजली वितरण कंपनियों के साथ सौर ऊर्जा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए अडानी ग्रुप ने भारतीय सरकारी अधिकारियों को कथित तौर पर 2200 करोड़ रुपये ($265 मिलियन) की रिश्वत देने की डील की थी। ये रिश्वत कथित तौर पर 2020 और 2024 के बीच दी गई है। यह फैक्ट अमेरिकी बैंकों और निवेशकों से छिपाया गया और सौर ऊर्जा परियोजना के लिए अरबों डॉलर का फंड जुटा लिया गया। अडानी ग्रुप को ऊर्जा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करके 2 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाने की उम्मीद थी।
क्या कहता है अमेरिकी कानून ?
चूंकि रिश्वतखोरी के आरोप भारतीय अधिकारियों से जुड़े हैं, लेकिन, अमेरिकी कानून कहता है कि यदि कोई भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला अमेरिकी निवेशकों या बाजार के हितों से संबंधित है तो ऐसे मामलों को कोर्ट में आगे बढ़ाया जा सकता है। जिस अवधि में कथित तौर पर रिश्वत दिए जाने का आरोप लगाया जा रहा है, ठीक उसी समय 2023 में अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप को लेकर एक विवादित रिपोर्ट भी जारी की थी। इस रिपोर्ट में अडानी समूह पर स्टॉक हेरफेर और अकाउंटिंग धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था। इससे अडानी ग्रुप के बाजार मूल्य में 150 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था।
प्रोजेक्ट, जिसे लेकर आरोप लगा है-
अमेरिकी अभियोग के अनुसार, भारतीय ऊर्जा कंपनी के संस्थापक और अध्यक्ष गौतम अडानी हैं। जबकि अडानी ऊर्जा कंपनी (अडानी ग्रीन एनर्जी) के कार्यकारी निदेशक सागर अडानी हैं। इसके अलावा, एज्योर पावर के सीईओ रहे रंजीत गुप्ता, एज्योर पावर में सलाहकार रूपेश अग्रवाल अमेरिकी इश्यूअर हैं।
भारतीय ऊर्जा कंपनी और अमेरिकी इश्यूअर ने सरकारी स्वामित्व वाली सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) को 12 गीगावाट सौर ऊर्जा उपलब्ध कराने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था। हालांकि, SECI को सौर ऊर्जा खरीदने के लिए भारत में खरीदार नहीं मिल पाए। ऐसे में खरीदारों के बिना सौदा आगे नहीं बढ़ सकता था और दोनों कंपनियों के सामने बड़े नुकसान का जोखिम था। इस बीच, अडानी ग्रुप और एज्योर पावर ने भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने की योजना बनाई।
रिश्वत का बड़ा हिस्सा आंध्र प्रदेश के अफसरों को मिला ?
यह घुस सरकारी अधिकारियों को इसलिए दिया गया कि वह राज्य बिजली वितरण कंपनियों को SECI के साथ बिजली आपूर्ति समझौते में शामिल होने के लिए तैयार करेंगे जिसमें से बड़ी धनराशि आंध्र प्रदेश के अधिकारियों को दिया गया।
इसके बाद कुछ राज्य बिजली कंपनियां सहमत हुईं और दोनों कंपनियों से सौर ऊर्जा खरीदने के लिए SECI के साथ समझौता किया। आरोप है कि भारतीय ऊर्जा कंपनी और अमेरिकी इश्यूअर ने मिलकर रिश्वत का भुगतान किया। इतना ही नहीं, अपनी संलिप्तता छिपाने के लिए कोड नामों का इस्तेमाल किया गया। उदाहरण के लिए गौतम अडानी को ‘Numero Uno’ या ‘The Big Man’ कहा जाता था। पूरा कम्युनिकेशन एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग के जरिए किया गया। इन दोनों कंपनियों ने कथित तौर पर अमेरिकी बैंकों और निवेशकों से 175 मिलियन डॉलर से अधिक जुटाए थे।
‘रिश्वत देने का प्लान बनाने के लिए हुईं बैठकें’
हालांकि, यूएस इश्यूअर में नेतृत्व परिवर्तन हुए, जिसके कारण काफी बदलाव हुए। रंजीत गुप्ता ने 2019-2022 तक एज्योर पावर के सीईओ के रूप में काम किया। 2022-2023 तक रूपेश अग्रवाल ने कार्यभार संभाला। परियोजना में शामिल कुछ अधिकारियों को इस्तीफा देने के लिए कहा गया। बैठकें आयोजित की गईं कि रिश्वत का भुगतान कैसे किया जाए, ताकि किसी को पता ना चल सके। विकल्पों में परियोजना के कुछ हिस्सों को ट्रांसफर करने पर भी चर्चा हुई। ऐसा भी कहा गया है कि गौतम अडानी ने भी इस संबंध में कथित तौर पर सरकारी अधिकारियों से व्यक्तिगत मुलाकात की।
फिलहाल, अमेरिकी अथॉरिटीज इस मामले की जांच कर रही हैं कि क्या अडानी ग्रुप ने अपने फायदे के लिए रिश्वत देने की कोशिश की और एनर्जी कॉन्ट्रेक्ट हासिल करने के लिए क्या उन्होंने भारत सरकार के अधिकारियों को गलत पेमेंट्स किए हैं? एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में अमेरिका की कोर्ट में सुनवाई के बाद गौतम अडानी और उनके भतीजे के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुए हैं ।
जांच के घेरे में कौन-कौन ?
अमेरिका में सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) ने बुधवार को इस मामले में गौतम अडानी के अलावा उनके भतीजे सागर अडानी, विनीत जैन के साथ ही एज्योर पावर के सीईओ रहे रंजीत गुप्ता और कंपनी के सलाहकार रूपेश अग्रवाल समेत सात लोगों को शामिल किया है। ऐसा दावा किया गया है कि अपनी रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी को कॉन्ट्रेक्ट दिलाने और भारत की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा संयंत्र परियोजना विकसित करने के लिए भारतीय सरकारी अधिकारियों को लगभग 265 मिलियन डॉलर की रिश्वत देने पर सहमति जताई थी। अमेरिकी अथॉरिटीज इस मामले की जांच कर रही हैं कि क्या Adani Group ने अपने फायदे के लिए रिश्वत देने की कोशिश की और एनर्जी कॉन्ट्रेक्ट हासिल करने के लिए क्या उन्होंने भारत सरकार के अधिकारियों को गलत पेमेंट्स किए हैं? एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में अमेरिका की कोर्ट में सुनवाई के बाद गौतम अडानी और उनके भतीजे के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुए हैं।
अडानी ग्रुप ने सफाई में कहा, ये आरोप निराधार हैं। हालांकि, ये सिर्फ आरोप ही हैं, जब तक दोष साबित नहीं हो जाता, तब तक प्रतिवादी निर्दोष माना जाता है। सभी संभव कानूनी उपाय किए जाएंगे। अडानी ग्रुप ने हमेशा सभी सेक्टर्स में पारदर्शिता और रेग्युलेटरी नियमों का अनुपालन किया है और करता रहेगा। हम अपने शेयरहोल्डर्स, पार्टनर और समूह की कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को आश्वस्त करते हैं कि हम एक कानून का पालन करने वाले संगठन हैं, जो सभी कानूनों का पूरी तरह से अनुपालन करता है।
अडानी ग्रुप ने अपने बयान में कहा, अमेरिकी न्याय विभाग और SEC ने हमारे बोर्ड के सदस्यों गौतम अडानी और सागर अडानी के खिलाफ न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले के अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने एक अभियोग जारी किया है। US स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने हमारे बोर्ड के सदस्य विनीत जैन को भी इसमें शामिल किया है। इन घटनाक्रमों के मद्देनजर हमारी सहायक कंपनियों ने फिलहाल प्रस्तावित USD नामित बॉन्ड पेशकशों के साथ आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है। ब्लूमबर्ग के मुताबिक, अमेरिका से लगे आरोपों के बाद अडानी ग्रुप की कंपनियों ने 600 मिलियन डॉलर के बॉन्ड को रद्द कर दिया है।