सियासत में सफल सयाना नौकरशाह

राजेन्द्र द्विवेदी, द डाटा स्ट्रीट- आजादी के 75 वर्षों में देश में नौकरशाह के सियासत में आने और केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री तथा अन्य महत्वपूर्ण पदों पर सफल राजनेता के रूप में कई नाम है। लेकिन केजरीवाल जैसा सियासत का सयाना नौकरशाह कोई नहीं हुआ। मनमोहन सरकार के भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ सत्ता से हटाने का अन्ना हजारे के नेतृत्व में आंदोलन हुआ जिसमें बड़ी संख्या में विभिन्न वर्गों से लोग जिसमें प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, धर्मवीर गांधी, आशुतोष शामिल हुए इनमें केजरीवाल भी थे।

आंदोलन का लाभ सयाने नौकरशाह केजरीवाल ने उठाया। जिसे देखकर आंदोलन की रीढ़ रहे अन्ना हज़ारे भी हैरान हो गए और अपने चेले के धूर्तता पर ठगा महसूस करके बयान जारी किया। जिन चालाक साथियों ने केजरीवाल को आगे करके सत्ता सुख भोगने के लिए 26 नवम्बर 2012 को आप पार्टी का राजनीतिक रूप से गठन किया। वह भी सयाने केजरीवाल के राजनीतिक सफलता के बढ़ते कदम में खो गए और अपमानित होकर सियासत से किनारा भी कर लिया। इनमें प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण पत्रकार आशुतोष, कवि कुमार विश्वास, सोशल एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव जैसे बहुत सारे लोग शामिल है। पार्टी गठन के एक वर्ष के अंतराल में ही दिल्ली विधानसभा चुनाव में कद्दावर नेता और 15 वर्षों से मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित को सत्ता से बाहर किया। शातिर और सियासत इतना कि जिस कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया उसी के साथ गठबंधन से सरकार बना लिया। 150 साल पुराने कांग्रेस पार्टी भी चक्रव्यूह में फंस गयी। समर्थन वापसी के बाद दूसरी बार मुकाबले में सायना नौकरशाह देश के इतिहास में दिल्ली राज्य में जीत का इतिहास बना दिया। 70 में 67 सीटें जीती। 15 वर्षों से सत्ता में रहने वाली कांग्रेस खाता भी नहीं खोल सकी। यह चुनाव केजरीवाल ने उस समय जीता जब 2014 में मोदी प्रधानमंत्री बन चुके थे और उनकी लोकप्रियता चरण पर थी। लोकसभा में 7 सीट भाजपा जीती थी लेकिन विधानसभा में पांसा पलट गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद बड़ी गाड़ी नहीं लूंगा, बंगला नहीं लूंगा। नौटंकीबाजी करने वाले ने सब कुछ लिया। 3 बंगले तोड़कर सीएम आवास बनाया। 100 करोड़ खर्च किया। लाखों के परदे लगे। सब कुछ किया लेकिन जादूगर ऐसा कि मोदी की कोई भी चाल सफल नहीं हुई।

छोटे से राज्य में देश भर में करोड़ों का विज्ञापन देकर आम आदमी पार्टी का विस्तार किया। दूसरी बार विधानसभा चुनाव में 70 में 63 सीटें जीत कर रिकॉर्ड बनाया। यही नहीं प्रधानमंत्री के गृह जनपद गुजरात में तीसरी ताकत बन के उभरा और कांग्रेस का नुकसान किया। सबसे अहम् और रोचक यह रहा है कि पंजाब जैसे कांग्रेस के गढ़ को भी 3 चौथाई सीटें जीत कर भगवंत मान को मुख्यमंत्री बना दिया। कम समय में पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाया। शातिराना ढंग से पार्टी का विस्तार करते हुए मोदी पर सीधा हमला करके भाजपा का विकल्प बनने का अथक प्रयास किया।

सयाने नौकरशाह को झटका तब लगा जब शराब घोटाले में उस जेल जाना पड़ा जिस कांग्रेस के खिलाफ अभियान चला कर दिल्ली पंजाब राज्य को छीना, गुजरात में सत्ता में कांग्रेस को आने से रोका। उसी पार्टी के नेता राहुल गाँधी के साथ इन्डिया गठबंधन में एक नई सियासी पैतरे के साथ जुड़ गया। जेल से छूटने के बाद उच्चतम न्यायालय के तमाम प्रतिबंधों के कारण जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी न छोड़ने वाले केजरीवाल आखिर में एक महिला आतिशी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। यह कहा जा सकता है कि सियासत में कोई सगा नहीं होता। सब कुछ अवसरवादी और शातिराने तरीके से सत्ता हासिल करने के लिए हर हथकंडा जायज होते है। जिसे एक सयाने नौकरशाह ने एक राजनेता बनकर दिखा दिया।