दूसरे लोकसभा चुनाव में 42 निर्दलीय और जनसंघ के 4 प्रत्याशी जीते

लोकसभा का दूसरा आम चुनाव 1957 में हुआ। 1956 में भाषायी आधार पर हुए राज्यों के पुनर्गठन के बाद लोकसभा का यह आम चुनाव पहला चुनाव था। तमाम आशंकाओं के विपरीत 1952 के मुकाबले इस चुनाव में कांग्रेस की सीटें और वोट दोनों बढ़े। इसके कारण भारतीय राजनीति में भाषायी विभाजन को लेकर लगाई जाने वाली अटकलें भी समाप्त हो गईं और जाति-संप्रदाय की तरह भाषा के आधार पर बड़े राजनीतिक विभाजन का खतरा समाप्त हो गया। इसी चुनाव में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव लड़े थे। तीन सीटों में एक पर उन्हें जीत मिली, जबकि एक पर तो उनकी जमानत ही जब्त हो गई।

1952 के चुनाव के मुकाबले इस चुनाव की पूरी प्रक्रिया काफी कम दिनों तक चली थी। 19 जनवरी से शुरू होकर एक मार्च 1957 तक चलने वाले इस चुनावी जलसे के भी केंद्रीय व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू ही थे। इस चुनाव की सबसे बड़ी खासियत थी कि यह 1956 में भाषायी आधार पर हुए राज्यों के पुनर्गठन के बाद लोकसभा का पहला आम चुनाव था। एक चुनी हुई सरकार के पांच साल तक मुखिया रह चुके नेहरू के खिलाफ कोई बड़ा मामला नहीं उठा था। विपक्ष में भी एका नहीं था और वह कई दलों और गुटों में बंटा हुआ था।

कम्युनिस्ट अलग झंडा उठाए हुए थे तो तो सोशिलिस्टों के भी कई खेमे थे। 1952 के आम चुनाव के बाद आचार्य जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी (केएमपीपी) और जयप्रकाश-लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी के विलय से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनी थी, लेकिन 1955 आते-आते उसका विभाजन हो गया। डॉ लोहिया और उनके समर्थकों ने अपनी अलग सोशलिस्ट पार्टी बना ली थी। जनसंघ का प्रभाव क्षेत्र सीमित था। उसके संस्थापक और सबसे बड़े नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का देहांत हो चुका था। लेकिन 1957 के चुनाव में ही जनसंघ को अटल बिहारी वाजपेयी जैसा नेता मिला।

1957 में लोकसभा में कुल 494 सीटें थीं। 494 जीते और इतने ही उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। कांग्रेस 490 सीटों पर चुनाव लड़ी और 371 यानी तीन चौथाई से अधिक सीटें जीतने में सफल रही। 1952 के मुकाबले उसकी सीटों में सात का इजाफा हुआ। पहले आम चुनाव के 45 से बढ़कर उसका प्राप्त मत प्रतिशत 47.8 हो गया। उसके मात्र दो उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी।
कांग्रेस के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन उसके और कांग्रेस के बीच फासला बहुत ज्यादा था। सीपीआई ने 110 सीटों पर लड़कर 27 पर जीत हासिल की। उसे नौ फीसदी वोट मिले और उसके 16 प्रत्याशियों को जमानत गंवानी पड़ी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के खाते मे 19 सीटें आई थीं। वह 189 पर चुनाव लड़ी थी जिनमें से 55 पर उसे जमानत गंवानी पड़ी थी। पीएसपी को इस चुनाव मे 10.4 फीसदी वोट मिले थे। इस चुनाव में जनसंघ ने 130 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन जीत उसे महज चार सीटों पर ही मिली। प्राप्त मतों का प्रतिशत तीन ही रहा। उसके 57 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।

करीब 119 सीटों पर क्षेत्रीय दल चुनाव लड़े थे, जिनमें से 31 सीटों पर उनकी जीत हुई और 40 पर जमानत गंवानी पड़ी थी। क्षेत्रीय दलों के खाते में 7.6 प्रतिशत मत गए थे। कुल 1519 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। 481 निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे। इनमे से 42 जीते और 324 को अपनी जमानत गंवानी पड़ी थी। निर्दलीयों को कुल 19 प्रतिशत वोट मिले थे। इस चुनाव में कुल 45 महिलाएं चुनाव लड़ी थीं जिनमें से 22 जीती और आठ की जमानत जब्त हो गई। इस चुनाव मे भी दो तरह के लोकसभा क्षेत्र थे। 312 उम्मीदवार एक सीट वाले क्षेत्रों से और 182 सांसद दो सीट वाले क्षेत्रों से चुनकर लोकसभा मे पहुंचे थे। पिछली बार के मुकाबले इस चुनाव में मतदाताओं की संख्या करीब दो करोड़ बढ़कर 19.36 करोड़ हो गई थी। 1957 में 12.05 करोड़ मतदाताओं ने अपने मत का इस्तेमाल किया था यानी मतदान का प्रतिशत 63.74 रहा। इस चुनाव में सरकारी खजाने से करीब 5.9 करोड़ रुपए खर्च हुए। 1952 की ही तरह ही 1957 मे भी चुनाव प्रचार पर सादगी का असर रहा। पैदल, साइकिल, तांगा और रिक्शा ही चुनाव प्रचार के मुख्य साधन थे। कार पर बड़े नेता ही घूमते थे। एक लोकसभा क्षेत्र मे एक गाड़ी का प्रबंध करना भी बड़ी बात थी।

डॉ. लोहिया, वीवी गिरि, चंद्रशेखर, रामधन हारे: 1957 का लोकसभा चुनाव कई दिग्गजों की हार का भी गवाह बना। दिग्गज समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया को कांग्रेस ने हराया। तो वीवी गिरी को एक निर्दलीय से हार का मुंह देखना पड़ा। उत्तरप्रदेश की चंदोली लोकसभा सीट से डॉ. लोहिया को कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह ने हराया था। कांग्रेस के टिकट पर आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम लोकसभा क्षेत्र से वीवी गिरि मात्र 565 वोट से चुनाव हार गए थे। उन्हें निर्दलीय डॉ. सूरीदौड़ा ने हराया था। एक अन्य समाजवादी नेता पट्टम थानु पिल्ले केरल की त्रिवेन्द्रम लोकसभा सीट से चुनाव हारे थे। उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी ईश्वर अय्यर ने हराया था।

जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय जीवन की शुरुआत इसी आम चुनाव से हुई थी। उन्होंने उत्तर प्रदेश की तीन सीटों से एक साथ चुनाव लड़ा था। वे बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से तो जीत गए थे लेकिन लखनऊ और मथुरा में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। मथुरा में तो उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी। लखनऊ से कांग्रेस के पुलिन बिहारी बनर्जी ने उन्हें हराया था, जबकि मथुरा से निर्दलीय उम्मीदवार राजा महेंद्र प्रताप की जीत हुई थी। वाजपेयी उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे और प्रधानमंत्री नेहरू उनके भाषण कला के इतने मुरीद हुए कि कह डाला कि यह युवा एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा। पंडित नेहरू की यह बात सही साबित हुई और 39 साल बाद 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। वाजपेयी मथुरा से राजा महेंद्र प्रताप से चुनाव हारे लेकिन बलरामपुर सीट ने उन्हें संसद की दहलीज पर पहुंचा दिया। यहां से अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेस के नेता हैदर हुसैन को पराजित किया था।

पांच क्षेत्रीय दलों का उदय : इस चुनाव की यह भी विशेषता रही कि पहली बार कम से कम पांच बड़े क्षेत्रीय दल अस्तित्व में आए थे। तमिलनाडु में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़घम (द्रमुक), ओडिशा में गणतंत्र परिषद, बिहार में झारखंड पार्टी, संयुक्त महाराष्ट्र समिति और महागुजरात परिषद जैसे क्षेत्रीय दलों का गठन इसी चुनाव में हुआ था।

45 महिला प्रत्याशियों में से 22 ने जीता चुनाव
दूसरे लोकसभा चुनाव में 45 महिला प्रत्याशी मैदान में थीं जिनमें से 22 ने जीत दर्ज की।

चुनाव के बाद 18 अप्रैल 1957 को तीसरे नेहरू मंत्रिमंडल का गठन हुआ। गृहमंत्री की जिम्मेदारी पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने संभाली। विदेश मंत्रालय का प्रभार जवाहरलाल नेहरू ने अपने ही पास रखा। वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी थिरुवलु थातु कृष्णामाचारी के पास थी। बाद में 13 मार्च 1958 में मोरारजी देसाई ने वित्त मंत्री के तौर पर जिम्मेदारी संभाली। खुद का वोट लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण है। प्रत्याशी दूसरों से वोट की गुहार लगाते हैं। लेकिन देश में 1957 का चुनाव ऐसा भी रहा है जिसमें 63 प्रत्याशियों को एक भी वोट नहीं मिला। यानि प्रत्याशियों को खुद का भी वोट नहीं मिला। मतदान की अंकतालिका में उनके आगे वोटों की संख्या शून्य रही। 1957 के लोकसभा चुनाव में देश के 17 राज्यों की 494 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव हुए। इन सीटों पर 1519 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। इनमें से 63 प्रत्याशी ऐसे थे। जिन्हें एक भी वोट नहीं मिला। राजस्थान के 18 लोकसभा क्षेत्रों में से 10 ऐसे थे। जहां 18 प्रत्याशियों को एक भी वोट नहीं मिला। शून्य वोट प्राप्त करने के मामले में पूरे देश में नागौर अव्वल रहा। यहां सात में से 5 प्रत्याशियों को एक भी मत नहीं मिला। यानी आधे से ज्यादा प्रत्याशियों को खुद का भी वोट भी नहीं मिला। राजस्थान में अजमेर में एक प्रत्याशी को शून्य मत मिले। वहीं नागौर में 7 में से पांच प्रत्याशियों को एक भी वोट नहीं मिला।

1957 के चुनाव में इन उम्मीदवार को नहीं मिला एक भी वोट
राजस्थान से उम्मीदवार – अजमेर में सोभागमल, झुंझुनूं में रघुवीर सिंह, सीकर में बल्लू, बांसवाड़ा में ललित मोहन, बाड़मेर में हुकम सिंह, नागौर में अजीत सिंह, सूरजरतन सिंह, पीपी राजा नारायणलाल, शंकरलाल, भोपाल सिंह, जयपुर में रावत मानसिंह व सोभागमल, दौसा में किशनलाल व लालूराम, भरतपुर में राजामान सिंह व हंसराज, पाली में मोहता सूरज रतन व लोयलका चिरंजीलाल।
मुंबई, बिहार, भोपाल से उम्मीदवार- दरभंगा के रामेश्वर साहू, सासाराम के छोटूराम, गया के फतह कुमार सिंह, नवादा रघुवंश नारायण, जमशेदपुर के बंकिंम चंद्र चक्रबती, रांची वेस्ट थेवदर सोरेन, बॉम्बे सिटी साउथ रामकिशन अलीमचंद, बॉम्बे सिटी सेन्ट्रल अवाती ईएम, खेड़ में नविस विठ्टल राणभाऊ, सतारा में देशमुख दिनकर राव, आकोला में गोले पुरूषोत्तम बलवंत, रामटेक भोंसले बीटी, यवतमाल अग्रवाल नंदकुमार भरतलाल, तिरूवल्ला टी के श्रीनिवासन, मुवाथुपुजा इमैनुअल पैकेड, मंदसौर में कोकसिंह, भोपाल में गुलाबचंद, छिंदवाड़ा में शिवनारायण देव किशन, बलोडा बाजार में नमदास, मद्रास के तीरूनवमल्लाई में दोरीस्वामी रेड्डीयार, तीरूपत्तुर में आर मुत्थु, पुडूकोट्टाई में एसएस मरीसामी, रामनाथ पुरम में सिंगरयन, तीरूनेलवेली में कनप्पा पिल्लई और मेघनाथन, दिंदिगुल में जीएन नाइडू, गोबीचेट्टीपलियम श्रीनिवास अय्यर, निलगिरीज में एमवी रामचंद्र नाइडू , कोलार एस शांतिप्रकाश व वेंकटरायअप्पा।
पंजाब, दिल्ली, हरियाणा के उम्मीदवार- कांगड़ा में रूप सिंह, अंबाला में बंसीलाल, गुड़गांव में ताज मोहम्मद, महेन्द्रगढ़ में मनोहरलाल, गुरुदासपुर में करमचंद, लुधियाना में बछिंत सिंह, मैनपुरी में शंकरलाल, इलाहबाद में मुबारक मजदूर, फुलपुर में वियोग सागर सोनकर, कूच बिहार में देवेन्द्र मोहन सरकार, डायमंड हार्बर में सुशील कुमार सरदार, नई दिल्ली में जगन्नाथ पुत्र मायादास व जगन्नाथ सालिगराम, मंडी में मस्तराम, चंबा में मंगतराम भारतीय जनसंघ व निर्दलीय आनंद चांद।

पहली बार चुनाव में बूथ कैप्चरिंग
दूसरे आम चुनाव के दौरान ही देश पहली बार बूथ कैप्चरिंग जैसी घटना का गवाह बना। यह घटना बिहार के बेगूसराय जिले में रचियारी गांव में हुई थी। यहां के कछारी टोला बूथ पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया। इसके बाद तो अगले तमाम चुनावों तक बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं आम हो गईं, खासकर बिहार में, जहां राजनीतिक पार्टियां इसके लिए माफिया तक का सहारा लेने लगीं।