लोकसभा चुनाव 1996 : पहली बार 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी

वर्ष 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर सत्ता से बाहर हो गई तथा भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र में पहली बार सरकार बनाई लेकिन इसके साथ ही केंद्र में राजनीतिक अस्थिरता का दौर तेज हो गया था। 11वें लोकसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी लेकिन वह 13 दिन ही चल सकी।

इस चुनाव में भी किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। राजनीतिक अस्थिरता का आलम यह था कि मई 1996 से मार्च 1998 तक देश में 3 प्रधानमंत्री बने। इसके बावजूद लोकसभा अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और देश में फिर से आम चुनाव कराना पड़ा।

11वें लोकसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी लेकिन वह 13 दिन ही चल सकी। इसके बाद एचडी देवगौड़ा और इन्द्रकुमार गुजराल ने देश का नेतृत्व किया था। इससे पहले पीवी नरसिंह राव की अल्पमत सरकार ने कुशल नेतृत्व क्षमता के कारण 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया लेकिन चुनाव में कांग्रेस कोई करिश्मा करने में विफल रही थी।

लोकसभा की 543 सीटों के लिए हुए चुनाव में 8 राष्ट्रीय पार्टियों, 30 राज्यस्तरीय पार्टियों तथा 170 निबंधित दलों ने चुनाव लड़ा। कुल 59 करोड़ 25 लाख मतदाताओं में से 57.94 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर 13,952 उम्मीदवारों के राजनीतिक भविष्य का फैसला किया था। इस चुनाव में जनता पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका था।

13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी
भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी और राष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 मई को प्रधानमंत्री का पद संभाला लेकिन, 13 दिन ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ पाए और बहुमत साबित न कर पाने की वजह से इस्तीफा देना पड़ा। जनता दल के नेता एच. डी. देवेगौडा ने 1 जून को संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार का गठन किया। लेकिन उनकी सरकार भी 18 महीने ही चली। देवेगौड़ा के कार्यकाल में ही विदेश मंत्री रहे इन्द्र कुमार गुजराल ने अगले प्रधानमंत्री के रूप में 1997 में पदभार संभाला। कांग्रेस इस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी। इसके बाद देश में 1998 में मध्यावधि चुनाव हो गए।

8 राष्ट्रीय और 30 क्षेत्रीय दलों ने लड़ा 1996 का चुनाव
1996 के लोकसभा चुनावों में 8 राष्ट्रीय और 30 क्षेत्रीय दल मैदान में थे। इस चुनाव में 171 रजिस्टर्ड पार्टियां चुनाव लड़ रही थीं। जब चुनाव नतीजे आए तो क्षेत्रीय पार्टियों को 543 में से 129 सीटें मिलीं। इस चुनाव से पहले ही कई पूर्व कांग्रेसी पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी बना चुके थे। इनमें एनडी तिवारी और माधवराव सिंधिया शामिल थे। लेकिन चुनाव में एनडी तिवारी को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में सीपीआई ने 32 और सीपीएम ने 12 सीटें जीतीं। जनता दल के खाते में 46 सीटें आई।

10,635 निर्दलीय लड़ रहे थे चुनाव, 9 की जीत हुई
चुनाव में जनता दल ने 46 सीटें जीतीं। पार्टी को बिहार में सबसे ज्यादा सीटें मिली। बिहार में जनता दल ने 22 सीटें जीतीं। कर्नाटक में पार्टी के खाते में 16 सीटें आई। जबकि ओडिशा में जनता दल ने चार और यूपी में दो सीटें जीती। जम्मू और कश्मीर में पार्टी के खाते में एक सीट आई। इस चुनाव में 10,635 निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। इनमें से 9 की ही जीत हुई। 1996 के लोकसभा चुनाव में 13,952 प्रत्याशी मैदान में थे।

1996 लोकसभा चुनाव
भाजपा- 161 सीटें
कांग्रेस- 140 सीटें
सीपीआई- 32 सीटें
सीपीएम- 12 सीटें
जनता दल- 46 सीटें
कुल सीटें- 543

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देवगौड़ा बने पीएम
इस परिस्थिति में 15 मई को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दे दिया। अटल बिहारी वाजपेयी कुछ क्षेत्रीय और मुस्लिम पार्टियों के सपॉर्ट से प्रधानमंत्री तो बन गए, लेकिन 13वें ही दिन उन्हें पद छोड़ना पड़ा। वह लोकसभा में 200 सदस्यों का समर्थन नहीं हासिल कर सके। इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने सरकार बनाने की पेशकश की। जनता दल की मदद से सरकार बननी थी, इसलिए एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया। वह उस वक्त कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे।

गुजराल को मौका और लालू की नई पार्टी
18 महीने के भीतर ही गठबंधन में आंतरिक कलह की वजह से चुनाव कराने की नौबत आ गई। दोबारा चुनाव कराने से बचने के लिए कांग्रेस दूसरे फ्रंट के साथ चली गई और 21 अप्रैल 1997 को इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बन गए। कुछ दिन बाद गुजराल को अपनी ही पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ा। जब लालू प्रसाद यादाव चारा घोटाले में फंस गए तो सीबीआई का दबाव बन गया। उधर, इंद्र कुमार गुजराल ने जांच अधिकारी का तबादला करवा दिया। इससे यह संदेश गया कि प्रधानमंत्री लालू यादव को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बाद लालू प्रसाद ने जनता दल का दामन छोड़कर अपनी अलग पार्टी ‘राष्ट्रीय जनता दल’ बना ली। हालांकि लालू यादव नई पार्टी बनाने के बाद भी इंद्र कुमार गुजराल के साथ ही रहे।’ गुजराल 11 महीने तक प्रधानमंत्री रहे जिसमें से 3 महीने वह कार्यवाहक प्रधानमंत्री (केयर टेकर पीएम) थे।