लोकसभा चुनाव 2019: जब जनता ने नरेंद्र मोदी को 2014 से भी ज्यादा दिया समर्थन

दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में चुनाव हुए। इस चुनाव में करीब 67.11 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। भारतीय संसदीय चुनावी इतिहास में यह अब तक का सबसे अधिक मतदान रहा है। ये चुनाव कई मायनों में खास रहा है। इस चुनाव में जहां बीजेपी ने लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर इंदिरा गांधी के रिकॉर्ड की बराबरी की वहीं कांग्रेस देश के चुनावी इतिहास में लगातार दूसरी बार मुख्य विपक्षी दल की हैसियत को हासिल करनें मे असफल रही।

गठबंधन में अव्वल रहा एनडीए, यूपीए फिसड्डी
लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट के बीच बीजेपी ने अपने घटक दलों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी। इसी वजह से आम चुनाव से पूर्व हुए उपचुनावों में बीजेपी के खिलाफ शिवसेना ने अपना प्रत्याशी उतारा था। दूसरी तरफ आरएलएसपी, एसबीएसपी, लोजपा आदि दलों ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया था। चन्द्र बाबू नायडू भी एनडीए छोड़ चुके थे। नवम्बर में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में से 3 राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद यूपी और बिहार में होने वाले महागठबंधन में कांग्रेस को उचित सम्मान मिलने की सम्भावना बढ़ी थी। इस हार से सबक लेते हुए बीजेपी ने गठबंधन को साधने के लिए हर कीमत पर ‘गठबंधन बचाओ रणनीति’ पर पहला काम शुरू किया।

बीजेपी ने घटक दलों के अविश्वास को समाप्त करने की पहल बिहार से की। पिछले आम चुनाव में 2 सीट जीतने वाली जेडीयू को 17 सीट दे दी और 22 सीटों वाले बीजेपी ने खुद 17 सीट लिया। इसके साथ 6 सीट लोजपा को देकर रामविलास पासवान को हालिया राज्यसभा चुनाव में भेजने का वायदा बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से किया। बीजेपी के इस कदम ने अन्य राज्यों में घटक दलों पर भरोसे में लिया।

दूसरी तरफ कांग्रेस प्रकाश अम्बेडकर की बहुजन वंचित पार्टी से समझौता नहीं कर सकी, साथ ही साथ सपा-बसपा के साथ यूपी के महागठबंधन में भी शामिल नहीं हो सकी। बिहार में गठबंधन तो बना लेकिन अंत समय तक सीटों के तालमेल को लेकर खींचतान चलती रही। मध्य प्रदेश में अच्छे खासे जनाधार वाले नेता ज्योतिरादित्य की ड्यूटी उत्तर प्रदेश में लगाई गई इससे मध्य प्रदेश में जितना फायदा हो सकता था वो भी नहीं हुआ बाकी यूपी में कोई बढ़त भी नहीं मिली। पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी से समझौता नहीं हो सका। असमंजस की स्थिति में हुए इस चुनाव में रणनीतिक कमजोरियों की वजह से यूपीए पर एनडीए ने रणनीतिक बढ़त बनाई।

नये दलों की भूमिका कितनी प्रभावी
हरियाणा में इस बार जेजेपी, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (टकशाली ) बसपा, कम्युनिस्ट पार्टी और आप के नेताओं के द्वारा बनाये गए मोर्चे, उत्तर प्रदेश के शिवपाल यादव द्वारा बनाये गए दल प्रगतिशील समाजवादी लोहिया, आंध्र प्रदेश में पवन कल्याण के द्वारा बनाये गए जनसेना दल ने कोई सीट जीतनें में कामयाबी हासिल नहीं की। लेकिन इन नई पार्टियों ने कई जगहों पर बीजेपी को फायदा जरूर पहुंचाया।

दल-बदलुओं का कितना प्रभाव
बीजेपी के साथ जाने वाले ज्यादातर नेताओं ने चुनाव जीता जबकि कांग्रेस ज्वॉइन करने वाले अधिकांश नेता हार गए। इसके पीछे का सीधा कारण था कि बीजेपी ने इन नेताओं को जनता के बीच जाने का पर्याप्त समय दिया जबकि कांग्रेस ने शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद जैसे नेताओं को ऐन वक्त पर पार्टी में शामिल कराया। कांग्रेस ने कई ऐसे नेताओं को अपनी पार्टी में लिया उन्हें उनकी मजबूत सीटों से हटकर दूसरी जगहों से चुनाव लड़ाया। जैसे- आजमगढ़ के पूर्व सांसद चुनाव के समय कांग्रेस में आये लेकिन इन्हें आजमगढ़ से न लड़ाकर भदोही से लड़ाया गया, नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बाँदा से न लड़ाकर बिजनौर से अंत समय में टिकट दिया गया, नाना पटोले भी चुनाव नहीं नहीं जीत सके थे इसका कारण था कि उन्हें उनकी पुरानी सीट से चुनाव लड़ाने के वजाय नागपुर से चुनाव लड़ाया गया।

कैसा रहा क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव 2019 में क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। कांग्रेस और भाजपा के साथ चुनाव न लड़ने वाले मुख्य क्षेत्रीय दल सपा, टीएमसी, टीडीपी, एनसी, पीडीपी, यूपी की एसबीएसपी, दिल्ली की आप, झारखण्ड की जेमुमो, ओडिशा की बीजद, हरियाणा की इनेलो, तमिलनाडु के एआईडीएमके, पंजाब की शिरोमणि अकाली दल का प्रदर्शन पिछले चुनावों की तुलना में काफी खराब रहा। इन दलों के द्वारा जो स्पेस खाली किया गया एआईडीएमके को छोड़कर हर एक स्पेस पर बीजेपी काफी मजबूती से काबिज हुई है।

एकबार फिर अप्रासंगिक हुआ तीसरा मोर्चा
तीसरा मोर्चे का भारत की राष्ट्रीय राजनीति में एक अनोखा अस्तित्व रहा है। भारत के दो मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस के अलावा देश के अन्य महत्वपूर्ण दलों ने मिलकर समय-समय पर एक तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश की है, यह तीसरा मोर्चा कई बार सफल हुआ और कई बार असफल। इस बार भी यह तीसरा मोर्चा बनाने के लिए कई दल चुनाव पूर्व काफी सक्रिय हुए थे। विगत नवम्बर में हुए विधान सभा के चुनावों में तेलंगाना और मिजोरम में क्षेत्रीय दलों द्वारा बीजेपी और कांग्रेस को बुरी तरह हारने के बाद टीचन्द्र शेखर राव इसके नायक के रूप में उभरे थे। चुनाव नतीजे के पहले केसीआर ने कई मीटिंग की थी। लेकिन फिर भी इसके नतीजे सिफर रहे।

पिछले कई चुनावों में तीसरे मोर्चे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताओं में से प्रमुख नेता रहे मुलायम सिंह यादव इस बार इस प्रक्रिया से बिल्कुल दूर रहे। साथ ही साथ चन्द्र बाबू नायडू कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनाने की पैरोकारी में लगे दिखे। 2014 के चुनावों में तीसरे मोर्चे के महत्वपूर्ण नेताओं में गिने जाने वाले नीतीश कुमार इस बार बीजेपी के साथ चुनाव लड़े। अन्दर खाने तीसरे मोर्चे के लिए लामबंदी करने वाले महत्वपूर्ण दल इस बार या तो न्यूट्रल दिखे या फिर बीजेपी या कांग्रेस के साथ हो लिए।

उपचुनाव के दौर में पहुंची राजनीति
इस लोकसभा चुनाव में 49 विधायक और 2 विधान परिषद् सदस्य समेत चार राज्य सभा सांसदों ने चुनावी जीत दर्ज की है। अलग-अलग सदनों के ये 55 सदस्य देश के 16 राज्यों से आते हैं। गौरतलब है कि इनके लोकसभा के लिए चुने जानें के बाद अब इन सीटों पर उपचुनाव होंगे। अतः आगामी 6 महीने में पूरे देश में बड़े स्तर पर उपचुनाव देखने को मिलेंगे।

– उत्तर प्रदेश से कुल 11 सीटों (गोविंदनगर, टुंडला, लखनऊ कैंट, गंगोह, बेल्‍हा, मानिकपुर, इगलास, जैदपुर, प्रतापगढ़, जलालपुर और रामपुर) पर उपचुनाव होंगे। तीन नए सांसद रीता बहुगुणा जोशी, सत्‍यदेव पचौरी और एसपी सिंह यूपी की वर्तमान योगी सरकार में मंत्री हैं। तो इनके स्थान पर नए मंत्री भी उत्तर प्रदेश की विधान सभा में देखनें को मिल सकते हैं।

– ओडिशा की भी दो विधानसभा सीटें शामिल हैं जहां सीएम नवीन पटनायक को हिंजिली या बीजेपुर में से एक सीट को चुनना होगा। इस बीच महाराष्‍ट्र की छह विधानसभा सीटों और झारखंड की दो तथा हरियाणा की एक सीट पर उपचुनाव नहीं होंगे क्‍योंकि वहां पर अगले छह महीने में चुनाव होना है। उधर, एसपी-बीएसपी गठबंधन को यूपी में आने वाले छह महीने में एक और टेस्‍ट से गुजरना होगा।

– बिहार में भी पांच विधानसभा और दो विधान परिषद सीटों पर अगले छह महीने में चुनाव कराने पड़ेंगे। ये पांच सीटें हैं- सिमरी बख्तियारपुर, दरौंधा, बेल्‍हर, नाथनगर और किशनगंज। नीतीश सरकार के तीन मंत्री राजीव रंजन सिंह, दिनेश चंद्र यादव (दोनों जेडीयू के) और पशुपति कुमार पारस (एलजेपी) लोकसभा चुनाव जीत गए हैं। अब उन्‍हें अपने मंत्री पद से इस्‍तीफा देना होगा। और इस प्रकार उत्तर प्रदेश की तरह ही बिहार में भी तीन अन्य मंत्री सदन में देखे जा सकते हैं।

आगामी हरियाणा और महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के सभी दिग्गज चुनाव लड़कर विधान सभा की शोभा बढ़ाने का प्रयास करेंगे। इस सन्दर्भ में यह बात दीगर है कि संसद की शोभा बढाने वाले अशोक तंवर, कुमारी शैलजा, दीपेंदर सिंह हुड्डा, दुष्यंत चौटाला, अवतार सिंह बढ़ाना सरीखे नेताओं हरियाणा विधान सभा में देखे जानें की भरपूर सम्भावना है।

मोदी बनाम कौन की लड़ाई में हारा विपक्ष
मोदी जी ने अपने हर रैलियों में इस बात पर जोर दिया कि “आपके द्वारा दिया गया हर एक वोट मोदी के खाते में ही आएगा” और इधर मीडिया ने भी मोदी के मुकाबले कौन “Modi Vs Who” का राग छेड़ा। इसके वावजूद विपक्ष मोदी के बदले कौन के जबाब पर एकजुट नहीं दिखा। सांसदों के द्वारा पीएम बनाने वाले देश में इस बार पीएम के कहने पर लोगों ने अपने सांसद चुने। वहीं कांग्रेस या अन्य दलों ने डोर टू डोर अभियान पर कम जोर दिया।

कांग्रेस ने दक्षिण भारत में केरल और तमिलनाडु में काफी बेहतर रणनीति के तहत कार्य किया और नतीजे भी अच्छे भी रहे। बीजेपी ने नवंबर में 3 राज्यों में हुई उपचुनावी हार के बाद अपने घटक दलों से सामंजस्य स्थापित करने का कार्य किया। साथ ही साथ प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ चल रहे एंटी इन्कम्बेंसी से बचने के लिए पूरे चुनाव को मोदी केंद्रिंत बनाया। इसके लिए इन मुख्यमंत्रियों के बेटों या परिवार के किसी भी सदस्य को चुनाव में उतारने से भी परहेज किया। जहां जरूरत पड़ी वहां बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसदों के टिकट भी काटे, अदला- बदली (मेनका-वरुण /सुल्तानपुर-पीलीभीत ) भी की। वही राहुल गाँधी के भरपूर प्रयासों और संयमित चुनावी अभियान के बाद भी कांग्रेस रणनीतिक कमजोरियों की वजह से चुनाव हार गई।

2019 की सबसे बड़ी जीत
➤ 6.89 लाख वोटों के अंतर से 2019 में BJP के सी. आर. पाटिल जीते थे। वोटों के हिसाब से यह अंतर सबसे बड़ा था।
➤ 6.56 लाख वोटों से करनाल सीट पर BJP के संजय भाटिया ने कांग्रेस के कुलदीप शर्मा को हराया था।
➤ 6.38 लाख वोटों से फरीदाबाद में BJP के कृष्णपाल ने कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना को हराया था।
➤ 6.12 लाख के अंतर से भीलवाड़ा में BJP के सुभाषचंद्र बहेरिया ने कांग्रेस के रामपाल शर्मा को हराया था।
➤ 5.89 लाख वोटों से वडोदरा लोकसभा सीट से BJP की रंजनबेन भट्ट ने कांग्रेस के प्रशांत पटेल पर जीत दर्ज की थी।
➤ 5.78 लाख से ज्यादा के अंतर से पश्चिमी दिल्ली से BJP के प्रवेश वर्मा ने जीत दर्ज कर सांसद बने थे।

2019 की सबसे छोटी जीत
➤ 181 वोटों से मछलीशहर से BJP के भोलानाथ ने जीत हासिल की थी। यह सबसे कम अंतर से जीत थी।
➤ 1142 वोटों के अंतर से TMC की अपरूपा पोद्दार ने BJP के तपन कुमार रे को हराया था।
➤ 1445 वोटों से खूंटी से BJP के अर्जुन मुंडा ने जीत हासिल की थी।
➤ 1817 वोटों के अंतर से कर्नाटक में चामराजनगर से BJP के वी. श्रीनिवास प्रसाद जीते थे।
➤ 2439 वोटों से बर्धमान-दुर्ग से BJP के एस. एस. अहलूवालिया ने जीत दर्ज की थी।