पूर्व पीएम और कांग्रेस के दिवंगत नेता राजीव गांधी का नाम 2019 के लोकसभा चुनावों में खूब चर्चा में है. पीएम नरेंद्र मोदी (PM NARENDRA MODI) ने हाल ही में राजीव गांधी पर जो टिप्पणी की, उसके बाद से इस नाम को लेकर सियासी आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. बता दें कि पीएम मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के पिता राजीव गांधी पर बिना नाम लिए हमला करते हुए कहा था, ‘मिस्टर क्लीन का जीवनकाल ‘भ्रष्टाचारी नंबर वन’ के रूप में खत्म हुआ था.’ उन्होंने राहुल पर तंज कसते हुए कहा था, ‘आपके पिताजी को आपके राज दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया. नामदार यह अहंकार आपको खा जाएगा. ये देश गलतियां माफ करता है, मगर धोखेबाजी को कभी माफ नहीं करता.’
पीएम मोदी के इस बयान के बाद सियासी गलियारों में हंगामा हो गया था और विपक्ष समेत कई नेताओं ने पीएम मोदी के इस बयान की निंदा की थी. पीएम की इस टिप्पणी के बाद यूपी के अमेठी में एक शख्स ने खून से चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखी और आयोग से मांग करते हुए कहा कि पीएम मोदी की आपत्तिजनक टिप्पणी को रोका जाए जिससे करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत न हों.
अब सवाल ये उठता है कि पीएम मोदी ने राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी नंबर वन क्यों कहा? वह ऐसा करके क्या दर्शाना चाहते थे? क्या ये राहुल गांधी के नारे ‘चौकीदार चोर है’ का जवाब था? या फिर लोकसभा चुनावों में वोट बैंक साधने की नई तरकीब? हालांकि सियासी पंडित तो यही कहते हैं कि राजीव गांधी पर निशाना साधकर पीएम मोदी ने कांग्रेस की मजबूत जड़ पर वार किया है लेकिन हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है और इस बार कांग्रेस जिस तरह इस मुद्दे को भुना रही है, कहीं बीजेपी को इन चुनावों में नुकसान ना उठाना पड़ जाए. आइए जानते हैं कि राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल के दौरान कौन से महत्वपूर्ण काम किए और किन वजहों से वह विवादों में रहे.
18 साल की उम्र में वोट का अधिकार, ईवीएम मशीन के प्रयोग को दिया बढ़ावा
आज किसी से पूछो कि वोट डालने के लिए अनिवार्य उम्र सीमा क्या है तो वह आसानी से बता देगा कि 18 साल. लेकिन पहले ऐसा नहीं था. राजीव गांधी के जमाने में वोट डालने के लिए उम्र सीमा 21 साल थी. राजीव गांधी ने ही वोटिंग के लिए 21 साल की उम्र घटाकर 18 करने का फैसला किया था. उनके इस फैसले से 5 करोड़ नए युवा वोटर्स बने थे. हालांकि उस दौरान राजीव गांधी के इस फैसले का बहुत विरोध हुआ था लेकिन आज की बात करें तो उनका ये फैसला सही लगता है क्योंकि 18 साल की उम्र के भारतीय नागरिक को अपना नेता चुनने की आजादी है. राजीव गांधी ने ईवीएम मशीन को चुनाव में शामिल करने के लिए कई कदम उठाए थे, उनका मानना था कि ऐसा करने से चुनाव प्रक्रिया में सुधार होगा और बैलट पेपर में होने वाली धांधली को रोका जा सकेगा.
पंचायती राज का अहम फैसला
राजीव गांधी का मानना था कि देश के गांवों की उन्नति देश की उन्नति है. उन्होंने गांवों को सशक्त बनाने के लिए कई कदम उठाए. पंचायती राज का कदम भी इसी कड़ी का एक फैसला था. उन्होंने पूरे देश में ग्राम सरकार की अवधारणा लागू की और संविधान में संसोधन करके ग्राम पंचायतों को सशक्त किया. उन्होंने गांव की आबादी को अपना फैसला खुद करने की स्वतंत्रता दी. वह कहते थे कि जब ग्राम पंचायतों को सत्ता में वह दर्जा मिलेगा जो संसद और विधानसभा का है तो लोकतंत्र में गांवों की भागीदारी बढ़ जाएगी. साल 1985 में पंचायती राज अधिनियम के जरिए राजीव गांधी सरकार ने पंचायतों को वित्तीय और राजनीतिक अधिकार दिए.
भारत में कंप्यूटर और विज्ञान के प्रयोग की पहल
आज हम जिस दौर में जी रहे हैं, उसमें बिना कंप्यूटर और मोबाइल के जिंदगी की कल्पना करना बहुत मुश्किल हो जाता है. हम ऑफिस में काम कर रहे हों या घर पर कोई प्रोजेक्ट बना रहे हों, कंप्यूटर हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है. सोचिए, अगर यह नहीं होता तो हमारा काम इतना आसान नहीं हो पाता और छोटे-छोटे काम के लिए हमें घंटों मेहनत करनी पड़ती. कंप्यूटर का भारत में प्रसार करने का श्रेय राजीव गांधी को ही जाता है. उनका मानना था कि युवा पीढ़ी कंप्यूटर और विज्ञान के जरिए ही आगे जा सकती है. राजीव गांधी जब पीएम थे तो उन्होंने विज्ञान और टेक्नालॉजी के लिए सरकारी बजट को बढ़ाया और यह पहल की गई कि हर देशवासी कंप्यूटर का प्रयोग कर सके. दुनिया को पहला कंप्यूटर 1940 के आखिर में मिला और भारत ने पहली बार कंप्यूटर 1956 में खरीदा था. कंप्यूटर का नाम HEC-2M था और इसकी कीमत 10 लाख रुपये थी.
शिक्षा के क्षेत्र में उठाया बड़ा कदम
शिक्षा किसी भी इंसान को समाज में सभ्यता से जीने का वजूद देती है. अगर हमने अच्छी पढ़ाई की है तो दुनिया में अच्छे ढंग से जीने के लिए हमें कड़ी मशक्कत नहीं करनी होगी. राजीव गांधी जब पीएम थे तो उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा ही एक प्रभावी कदम उठाया था. उन्होंने 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का ऐलान किया था जिसके तहत पूरे देश में जवाहर नवोदय विद्यालय की स्थापना करने का काम शुरू हुआ था. इस कार्यक्रम का मकसद था कि गांव में रहने वाले बच्चे भी अपनी पढ़ाई को एक नई दिशा दे सकें और एक शिक्षित समाज का निर्माण हो. देश के अंदर हर राज्य में कई जवाहर नवोदय विद्यालय हैं, जहां से पढ़कर ग्रामीण परिवेश के बच्चे पूरे देश में अपनी सफलता सिद्ध कर रहे हैं.
चीन के साथ बेहतर संबंधों की रखी नींव
चीन और भारत के बीच 1962 में युद्ध हुआ था जिसके बाद से भारत और चीन के बीच संबंध बहुत मधुर नहीं थे. 1988 में पीएम रहने के दौरान राजीव गांधी ने चीन की यात्रा की और भारत-चीन संबंधों को सामान्य करने की कोशिश की. दोनों देशों के बीच जो सीमा विवाद चल रहा था उसको लेकर राजीव के कार्यकाल में एक ज्वाइंट वर्किंग कमेटी बनाई गई थी जिससे दोनों देशों के बीच शांति बनी रहे. राजीव गांधी का यह कदम उस दौरान बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि किसी देश से युद्ध के बाद उसका दौरा करना एक साहसिक और शांति की स्थापना करने वाला कदम था.
राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान कई विवादों से भी उनका नाता रहा. यह विवाद कुछ इस तरह उनके साथ जुड़े जिसने आजीवन साथ नहीं छोड़ा और आज भी कांग्रेस को उन मुद्दो को लेकर सफाई पेश करनी पड़ती है. यहां जानिए राजीव गांधी से जुड़े विवाद-
शाह बानो केस में कोर्ट के फैसले को पलटने पर हुई किरकिरी
शाहबानो केस राजीव गांधी के कार्यकाल का सबसे विवादित मुद्दा था. राजीव गांधी ने मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए कोर्ट का फैसला तक पलट दिया था जिससे आज तक कांग्रेस की किरकिरी होती है. दरअसल इंदौर के एक वकील ने अपनी पत्नी शाह बानो के साथ 43 साल रहने के बाद उसे तलाक दे दिया और पांच बच्चों समेत उसे घर से बाहर निकाल दिया. शाह बानो ने अपने पति से हर महीने गुजारा भत्ते की मांग की और हाईकोर्ट ने शाह बानो के हक में फैसला सुनाया. लेकिन शाह बानो के पति ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. मुस्लिम पुरुषों को खुश करने के लिए राजीव ने 1986 में मुस्लिम महिला विधेयक पेश कर दिया जो आगे चलकर कानून बन गया. इस कानून के मुताबिक तलाक लेने के बाद मुस्लिम महिला को केवल तीन महीने तक ही गुजारा भत्ता मिलेगा. यह कानून राजीव गांधी के कार्यकाल के लिए सबसे बड़ी आफत बना. क्योंकि मुस्लिम महिलाएं राजीव गांधी सरकार से नाराज हो गईं.
बोफोर्स घोटाले ने आज तक नहीं छोड़ा कांग्रेस का दामन
1986 में भारत और स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी एबी बोफोर्स के बीच एक सौदा हुआ था. इस सौदे की कीमत 1437 करोड़ रुपए थी. सौदे के मुताबिक भारत की सेना को 155 एमएम की 400 होवित्जर तोप मिलनी थीं. लेकिन स्वीडन के रेडियो के एक दावे ने इस सौदे पर सवाल खड़े कर दिए. रेडियो ने दावा किया कि स्वीडिश कंपनी ने सौदे के लिए भारत के बड़े नेताओं और अधिकारियों को साठ करोड़ रुपए की रिश्वत दी. रेडियो के इस दावे ने सियासी गलियारों में तूफान ला दिया और राजीव गांधी को इसी आरोप की वजह से 1989 में कुर्सी गंवानी पड़ी. इस आरोप के बाद राजीव गांधी की कैबिनेट के साथी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी राजीव पर इस मुद्दे को लेकर खूब हमला किया था. वही बोफोर्स घोटाला आज भी कांग्रेस को असहज करता है.
राम मंदिर से ही शुरू किया था चुनावी अभियान
राजीव गांधी को नई सोच वाला नेता माना जाता था. जो वोट बैंक से इतर नई सोच और समझ से काम करते थे. लेकिन शाह बानो केस के बाद उनकी यह छवि धूमिल हो गई. उन्हें भी वोट के लिए निर्णय लेने वाला नेता माना जाने लगा. अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखे जाने के बाद राजीव गांधी ने वहीं से अपना चुनावी अभियान शुरू किया था. कांग्रेस सरकार ने 1989 में हिंदू समुदाय को खुश करने के लिए मंदिर की आधारशिला भी रखी लेकिन शाह बानो केस के बाद से नाराज मुस्लिम महिलाओं की आवाज बंट गई और मंदिर मुद्दे का क्रेडिट बीजेपी उठा ले गई.
शांति समझौता
श्रीलंका सरकार और लिट्टे के बीच जुलाई 1987 में शांति की बात चल रही थी. इस दौरान भारत सरकार मध्यस्थ की भूमिका निभा रही थी. भारत का उद्देश्य श्रीलंकाई तमिलों को सुरक्षा और स्वायत्तता दिलाना था. लिट्टे के सरगना प्रभाकरण को दिल्ली बुलाया गया था और राजीव गांधी ने उससे मुलाकात की थी. कहा जाता है कि इस मीटिंग के बाद प्रभाकरण शांति समझौते पर दस्तखत करने के लिए मान गया था. लेकिन जानकार कहते हैं कि तत्कालीन श्रीलंकाई प्रधानमंत्री जयवर्धने और प्रभाकरण दोनों ही उस वक्त शांति नहीं चाहते थे. हालांकि कोलंबो में सौदे पर तीनों पक्षों के हस्ताक्षर हुए थे और दोनों पक्ष इस बात पर राजी हो गए थे कि लड़ाई नहीं होगी.
जब राजीव गांधी लंकाई सैनिकों की टुकड़ी से गार्ड ऑफ़ ऑनर ले रहे थे तभी कि एक सिंहली सैनिक ने उन पर राइफल के बट से हमला बोल दिया था. उस सैनिक ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी. बाद में भारतीय सेना को ऑपरेशन पवन में भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. प्रभाकरण ने शांति समझौते को मानने से इंकार कर दिया था और वहां संघर्ष चल रहा था. 1989 में राजीव गांधी चुनाव हार गए और 1990 में भारतीय सेना ने अपने सैनिकों को इस संघर्ष से वापस बुला लिया. लेकिन 21 मई, 1991 में लिट्टे ने एक आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या कर दी. इस घटना के 18 साल बाद श्रीलंका की सेना ने 2009 में प्रभाकरण को मार गिराया था.